________________ रुदन करती हुई सखियों से युक्त गृह उद्यान में जाकर सूर्यवती ने मालन से पूछा कि, “पुत्र को कहां रखा था ?" . मालन ने वह स्थान बताकर कहा कि, ' मैंने तो यहां पुत्र को रखा था / " सूर्यवती और सखियों ने चारों तरफ शोध की परन्तु कहीं भी पुत्र प्राप्त नहीं हुआ। "क्या मनुष्य को कल्पवृक्ष आसानी से मिल सकता है ? दरिद्री के हाथ में चिन्तामणी रत्न आ भी जाये तो क्या वह वहां टिक सकता है ?" "यहां श्री श्रीचन्द का क्या हुआ होगा? कौन ले गया होगा? : अथवा किसने पुत्र रत्न का हरण किया होगा? .. "हे सखी ! अभागिनी के पास पुत्र रत्न कैसे रह सकता है ? : "हाय ! हाय ! मैं दुर्भाग्य द्वारा मारी गई हूँ।" सूर्यवती मुक्त कंठ : से रुदन करती हुई बेहोश होती जा रही थी। हाथ पकड़ कर सैन्द्री उसे महल में ले गई। सूर्यवती ने कहा कि, “हे देव ! क्या मैंने तेरा कुछ लिया है ? :: क्या मैंने तेरा विनाश किया है ? मेरे पुत्र रत्न को ले जाकर तूने : मेरी आंखों में धूल झोंक दी है। तेरी इसी प्रकार करने की इच्छा थी तो, हे विधाता। पहले इस पुत्र रत्न को क्यों दिया था ? मेरे उपर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust