________________ * 38 9. गई।" परन्तु उनको जय बोला कि, "मेरे मन में तो था कि माता के पुत्र का जन्ममहोत्सव में बड़ी घूम - धाम से करूंगा।" फिर / कृत्रिम शोक दर्शा कर सैनिकों को अपने साथ ही वहां से ले गया ! सूर्यवती ने सैन्द्री से कहा कि, "जय ने कैसा दिखावा किया ? अब तू जल्दी जाकर मेरे पुत्र को लाकर मुझे आनन्दित कर ! क्षुधा से पुत्र रुदन कर रहा होगा।" सैन्द्री ने तुरंत जाकर पुष्पों के पुंज को देखा, परन्तु श्री 'श्रीचन्द्र' तो वहां कहीं भी लजर न आया / इस लिए इधर उधर उसकी खोज करने लगी परन्तु प्राप्त न होने से वह रुदन करती 2 मूछित हो गई। जब मूर्छा हटी तो फिर वहां देख कर विलाप करती हुई वापिस आगयी। सैन्द्री का रुदन दूर से ही सुन कर सूर्यवती ने कहा "मेरे पुत्र को कुशल तो है !" सैन्द्री ने गद्गद् होकर कहा कि, "यदि श्री 'श्रीचन्द्र' को कुशल हो तो फिर दुःख किस बात का है, परन्तु पुत्र कहीं भी दिखता नहीं है।" . वज़ के समान कटु वाक्य सुन कर सूर्यवती मूछित हो गयी! कैर की डालियों से हवा कर सखियों ने सूर्यवती की मूच्छी को दूर किया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust