________________ * 37 . सुझावानुसार मालन को समझा कर श्री 'श्रीचन्द्र' को पुष्पों के करंडिये में रख कर उसे दे दिया। वह हमेशा की भांति सैनिकों के आगे से हो कर गृह उद्यान में चली गई। रत्न कम्बल में लपेटे हुऐ, श्री 'श्रीचन्द्र' को पुष्पों के पुंज में बड़ी सावधानी पूर्वक बिना किसी प्रकार की पीड़ा पहुंचाये गुप्त रख कर दोनों हाथों से, वह कहने लगी कि, "हे वत्स ! तुम सुखी रहो / अब मैं चलती हूं। पुज कोयहां एक क्षण के लिए भी नहीं रुक सकती हूँ।"मालन पुष्पको निरखती हुई वहाँ से सूर्यवती के पास आ गयी। इतने में सैनिकों ने अन्दर अवलोकन करते प्रसव के चिन्हों को देख कर सखियों से पूछा कि, "स्वामिनी ने कुमार को जन्म दिया या .. कुमारिका को ?" जब किसी ने भी उत्तर नहीं दिया तो तत्काल सैनिकों ने जय को समाचार दिया। शीघ्र ही जय वहां आ पहुँचा / बालक को न देखकर, जय ने तुरन्त ही सूर्यवती की पेटियों भोरे आदि की छानबीन की परन्तु कहीं भी कुछ न मिलने पर जय को प्रति खेद हुा / जप ने सैन्द्री से पूछा कि, "यहां क्या हुआ ?" ULLLLLLLLLL...................... सैन्द्री ने गर्भ का जर आदि इकट्ठा करके उसे बतलाते हुए कहा कि, "हमारा मनोरथ तो मन में ही रह गया / देवी ने पुत्र तो क्या पुत्री को भी जन्म नहीं दिया।" यह सुनकर जय के मन में आनन्द हुआ। मन में विचारने लगा कि, "मौषधी के बिना ही व्याधि मिट * P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust