________________ + 34 . "जैसे रोहणाचल रत्नों से युक्त होता है ऐसे यह श्रीचन्द्र कुमार सब गुणों से युक्त है / परन्तु आज हम अपने हर्ष का शोषण करें ऐसी भवितव्यता बन गई है।" रानी सूर्यवती के दुःख से सर्व सखियां दुःखित हुई। दीर्घ निश्वास वाली स्वामिनी को देख कर सखियों ने कहा कि, "हे देवी! दुःख को हृदय में धारण मत करो क्योंकि अभी ही प्रसव हुआ है। चिन्ता से व्याधि वृद्धि पाती है। शरीर क्षीण होता है, बुद्धि घटती है, इसलिए बुद्धिशालियों को चिन्ता नहीं करनी चाहिये / दुःख और विकल्पों से क्या ? श्रीचन्द्र के पुण्य प्रताप से सब शुभ होगा। स्वमनोरथ रुपी कल्पवृक्ष आज पुत्र जन्म से सफल हो गया है / अब तो "श्रीचन्द्र" का उनके नाम की अंगूठी से और आभूषणों से शृंगार करें।" ऐसा कह कर उसे पुनः स्नान करवा कर सुन्दर आभूषणों से अलंकृत करके, इन्द्र के समान रुपवान देख कर सैन्द्री ने कहा कि, 'हे बहनों। श्री 'श्रीचन्द्र का शुभ भाग्य और अति सुन्दर शरीर, विधाता ने रत्नों आदि के सार में से सार ग्रहण कर बनाया होगा * ऐसा मैं मानती हूँ / राजा प्रतापसिंह के घर आज कल्पद्रप तुल्य भी 'श्रीचन्द्र' कुमार जन्मा है / हमें उसकी यत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिये / अभी क्या है और सुवह क्या होगा, कुछ पता नहीं। जब उस दुष्ट को पता लगेगा तो इस पुत्र रत्न को ग्रहण कर लेगा। तब हम क्या कर सकेंगी ? अतः अभी ही विचार करके रक्षा कर लेनी : पाहिये।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust