________________ * 33 * सुन कर जय ने एकान्त में जो विचारणा की थी, यह सारा षड़यन्त्र उसी के अनुसार रचा गया है। प्रयाण के समय राजा के बार 2 बुलाने पर भी जय जानबूझ कर यहीं ठहर गया / अब क्या होगा ? कुछ समझ में नहीं आता / अब तो प्रभु जिनेश्वर देव की ही शरण ग्रहण करो।" शुभ महूर्त में जब चंद्र उच्च नक्षत्र में था और सर्व ग्रह उच्च स्थान पर थे। तब मध्य रात्रि के समय सूर्यवती पट्टराणी ने गर्भकाल पूर्ण होने पर एक पुत्र रत्न को जन्म दिया / ___वह पुण्यशाली मूर्तिमान सूर्य जैसा तेजस्वी था। उसके तेज के सामने दीपक भी निस्तेज दिखाई देता था। उस पुत्र रत्न को देख कर सूर्यवती का हृदय रुपी सरोवर हर्ष रूपी जल से उच्छल उठा / श्री 'श्रीचन्द्र कुमार रूपवान, भाग्यवान, शुभ लक्षणों से युक्त, चन्द्र जैसी कान्ति वाला, विकसित कमल के समान नयनों वाला और अष्टमी के चन्द्र के जैसे ललाट वाला था / . . .. दूसरी ओर जय के यम जैसे सैनिकों को देख कर सूर्यवती गद्गद् स्वर से कहने लगी, "हे सखियो / मेरे विचित्र भाग्य को देखो। आज राजाजी भी कुशस्थल में नहीं हैं। इस समय भला किसे हर्ष न होता ? परन्तु वाजिन्त्र गीत नृत्य आदि महोत्सव तो दूर रहे. हम थाली भी बजा सकें ऐसी भी परिस्थिति नहीं ! धिक्कार हो मेरे ऐसे दुष्ट कर्मों को।" P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust