________________ * 24 * किया / मुनिजी की बार 2 स्तुति करते हुए वह बोला कि "निश्चय ही पाप मेरे बड़े उपकारी हैं। आप के अलौकिकउपकार से मैं कभी उऋण नहीं हो सकता।" फिर हर्ष पूर्वक नमस्कार करके धरण श्री शत्रुजय तीर्थ की तरफ प्रायश्चित करने की भावना से चल पड़ा। क्रमशः प्रयाण करते हुए वह आज कुशस्थल में पाया है / हे राजकुमारों मैं वही घरण हूँ। यहां से मैं शत्रुजय जाऊंगा। .. - उस सिद्ध पुरुष के प्रसाद से मैं भूत भविष्य वर्तमान को जानकर बतला सकता हूँ। मुझे लोग प्रख्यात ज्योतिषी धरण के नाम से जानते हैं।" यह अद्भुत वृतान्त सुनकर राजकुमारों को बड़ा भाश्चर्य हुआ। परस्पर विचार विमर्श करके उनमें से ज्येष्ठ कुमार जय ने धरण को फल पुष्प प्रादि देकर पूछा कि "पिताजी का राज्य किसको मिलेगा?" घरण ने विधि से देखकर सिर हिलाया और बोला कि "राज्य के बारे में क्या पूछते हो ? आप में से राज्य किसी के भाग्य में दृष्टिगोचर नहीं होता। नूतन पटराणी सूर्यवती के एक प्रदूमुत पुत्र होगा ! वही राज्य लक्ष्मी की प्राप्त करेगा ऐसा मेरा बभिप्राय है।" - यह कटु वाक्य सुनकर क्रोध से राजकुमारों ने कहा कि "ऐसे पनिष्ट वचन क्या बोलते हो ? तुम तो कुछ भी नहीं जानते हो / सर्व शूरवीरों में अग्रसर जयकुमार के अतिरिक्त तथा हमें भी छोड़कर इस राज्य को दूसरा कौन भोग सकेगा ?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust