________________ .. "श्री नमस्कार महामन्त्र जैसा मन्त्र, 'श्री शत्रुजय जैसा तीर्थ और प्राणी की रक्षा जैसा धर्म, इन तीनों के समान त्रिभुवन में तुलना करने वाली कोई वस्तु नहीं है। श्री नमस्कार मन्त्र के स्मरण मात्र से प्राणी भवोभव की विपत्तियों को पार कर जाते हैं और सम्पत्ति को प्राप्त करते हैं / अनन्ता जिनेश्वर देवों द्वारा स्पर्शित तथा कहलाता है। अनेकों पापों को करने वाले हत्यारे सैकड़ों जीवों को मारने वाले तिर्यच भी इस तीर्थ को प्राप्त कर अपने कर्म खपा गये हैं / जिस प्रकार हमें अपने प्राण प्रिय हैं, उसी प्रकार जीव मात्र को भी अपने प्राण प्रिय होते हैं ! यह जानकर उत्तम पुरुषों को प्रत्येक जीव की रक्षा करनी चाहिये " ... इस धर्म देशना को सुन कर घरण हाथ जोड़कर अपना पाप प्रकाशित कर आत्म निन्दा करने लगा / "हे पूज्य !: मैं महा पापी हूँ, हत्यारा और क्रूर कर्म को करने वाला हूं। दो हत्याओं के पाप से मेरी क्या गति होगी.?". डी . मुनिश्री ने फरमाया कि, 'हे पुण्यात्मा ! तप और --क्रिया में में उद्यमशील, होकर तुम शत्रुजय तीर्थ पर जाकर दुष्कर तप की आराधना करो और विधि पूर्वक श्री नमस्कार महामन्त्र का जाप करो। इस से तुम दो हत्याओं के पाप से शीघ मुक्त हो जाओगे / ", FIR मुनिश्री के वचन स्वीकार कर उसने अहंन्त धर्म को धारण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust