________________ * 221 विश्वास करता है / सिद्ध ने कहा कि 'हे मुग्ध / मुझे रत्नों से कोई प्रयोजन नहीं / मैंने तो सिर्फ तेरी परीक्षा के लिए ऐसा कहा था / रत्न अपने पास ही रख / मुझे तो स्वर्ण पुरुष बनाने के लिए एक पुरुष ला दे." धरण उसके लिए भी तैयार हो गया / तब वह सिद्ध पुरुष अति प्रसन्न होकर बोला कि "हे सज्जन ! मुझे कोई स्वर्ण पुरुष आदि नहीं चाहिये, परन्तु मुझे तो एक सुन्दर सुपात्र पुरुष की आवश्यकता थी ? वह पूरी हो गयी है। मैं अब वृद्ध हो गया हूँ इस लिए अपने गुरु की दी हुई वर्तमान भूत और भविष्य को जाने वाली त्रिकाल विद्या, तुझे देता हूं / पूर्व संचित पुण्य प्रताप से तू मुझे मिला हैं हे कल्याणकारी ! मेरे पास 'कर्ण पिशाचिका' नाम की विद्या है / उस विद्या से त्रिकाल सम्बन्धी सत्य वस्तु का ज्ञान होता है / उस विद्या को तूं ग्रहण कर।" . घरण ने हर्ष पूर्वक सिद्ध पुरूष से उस विद्या को ग्रहण किण और विधि पूर्वक उस विद्या को सिद्ध भी कर लिया ! बहुत दिनों तक वह सिद्ध की सेवा में रहा / सिद्ध की आज्ञा से धरण पृथ्वी तल पर भ्रमण करने लगा। गिरि, वन, अरण्य गांव, आदि के नये 2 प्राश्चर्यो कोदेखते हुए एक दिन सुन्दर आम्रवृक्ष की छाया में ध्यान मग्न मुनि श्री को देखकर धरण ने उनके चरण कमलों में उल्लास पूर्वक नमन करके अपने आपको धन्य माना / वह उनके पास बैठ गया। मुनि श्री ने धर्मलाभ देकर प्रर्हत धर्म की देशना देते हुए फरमाया कि "जो दुर्गति में पड़ते हुए जीव को धारण करे, और उसे शुभ स्थान में पहुँचाए वहीं घम हा. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust