________________ * 16 अग्रमुखी योगिनी खरी बैठी थी। उमा को देखकर स्त्रियां उमा आ गयी' इस प्रकार कोलाहल करने लगीं। . योगिनी खर्परी को अन्नदान से खुश कर उमा नमन करके बैठ गयो / खर्परी ने पूछा कि, 'तूने मंत्र के साधना की ?' हां, आपके प्रभाव से साधना की।' / "हे बुद्धिमते ! फिर तू क्या कहती है ?" : "हे महेश्वरी ! मेरे उपर प्रसन्न हो, वृक्ष को उड़ाने की विद्या मैं मांगती हैं।" _ खपरी ने कहा कि, 'हे शुभे / मुझे बड़ी बलि दे' उमा ने कहा कि, 'हे माता ! काली चउदस को अपने पति की बलि दूंगी। 'अच्छा' कह कर प्राज्ञा दी / उमा ने अंजली कर के वश करने का चूर्ण मांगा। . "मैंने तुझे पहले दिया था वह कहां गया ?" ... उमा ने कहा कि, "उस चूर्ण से जिसे वश किया था वह आज मृत्यु पा गया" * दूसरा चूर्ण पाकर उमा भक्ति से नमन करके घर आ गयी / धरण सर्व स्त्री चारित्र देख कर और सुन कर भयभीत हो गया / भय, आश्चर्य और रौद्ररस से धरण का हृदय वीर, शोक और बीभत्स रस युक्त हुआ / फिर हास्य शृंगार रस का त्याग करके शान्त रस मय हुआ। .. .. . . मायावो कुटिल और दुष्ट आचरण वाली उमा को धिक्कारता हुआ घरण विचारने लगा कि चूर्ण से वश करके वह मेरी बलि चढ़ा देगी,जिस P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust