________________ TTITL * 204. प्रकार रस्सी से बंधी हुई गाय दूसरी जगह जा नहीं सकती उसी तरह मैं भी दुसरी जगह कैसे जा सकूगा / ऐसा विचार करता हुआ धरण मित्र के घर गया, मित्र के पूछने पर सब हकीकत उसे कह सुनायी। मित्र ने कहा कि, 'दुख, निन्दा और भय से क्या ? स्त्रियों का स्वभाव ही चंचल होता है / कर्म की गति कैसी विचित्र है ? बता अब तू क्या करना चाहता है / " धरण ने गद्गद् स्वर से कहा कि "उमा का मुख देखे बिना दूर देशान्तर जाना चाहता हूं। दो हत्या के पाप से भरा हुआ मैं आत्महत्या करूगा / " ... .. - मित्र ने कहा कि, “इस प्रकार मत करना क्यों कि दूध से सर्पनी की तरह तुम्हारे धन-से उमा उन्मत्त हो जायगी। इस लिए पहले अपने घर जाकर सबं सम्पत्ति को अपने अधीन करलो। फिर सदगुरु से दो हत्या का प्रायश्चित ग्रहण कर लेना। इस प्रकार से कार्य करना ही तुम्हें योग्य होगा परन्तु कदापि आत्म * हत्या का विचार न करना।" 1 मित्र की सलाह से धरण ने अपने घर जाकर सारी सम्पत्ति को अपने अधिकार में किया / उमा ने बड़े आडम्बर से कृत्रिम स्नेह दिखाया / परन्तु वह अब उसके स्नेह पाश में न फंसा / / - दूसरी और लोगों ने शव को कुएं में से बाहर निकाला, रणधीर को पहचान कर हा हा कार करने लगे / यह सुनकर उमा भी हा हा कार करने लगी। ... . . ' धरण सारी लक्ष्मी को लेकर मित्र के घर चला गया / वह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust