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________________ 65 110 'सरस्वती को रात्रि में स्वप्न में यक्ष ने कहा मैं तुम्हारे पति की लग्न समय में अपने मन्दिर में ग्राज से पांचवे दिन ले ग्राऊंगा / रूप से वह स्वप्न प्रातःकाल होने पर सखी से कहा / इस नगर में मत्री पुत्र श्रीदत्त सरस्वती का प्रेमी था, परन्तु सरस्वती को उस पर कोई श्रम नहीं था। श्रीदत्त ने लोभ से मुझे वश कर लिया, मैंने उसे राजकुमारी का स्वप्न बताया। उसके कहे अनुसार मैंने स्वामिनी से कहा कि श्रीदत्त को भी इसी प्रकार स्वान पाया है / सरस्वती ने कहा कि पर यक्ष के वचन इस प्रकार है तो ठीक है, वह सामग्री साहत आन वाला था, परन्तु उसके पिता ने उसे आने नहीं दिया होगा जिससे वह आ नही सका। - सरस्वती ने कहा, हे देव ! यक्ष के वचन अन्यथा कैसे हो सकते है। श्रीदत्त ने मुझे ठगा था, मेरा भाग्य अच्छा है कि मेरा वर सावा ण पुरुष नहीं हुआ, यक्ष के दिये हये आप ही मेरे पति हो, मेरा परम साभाग्य है परन्तु हम अगर यहां रहेंगे तो मेरे पिता अनर्थ करेंगे। पाचन्द्र ने कहा प्रिये ! मैं और वे मनुष्य हैं फिर डरने का क्या काम ? तुम डर क्यों रही हो ? देखते हैं उनमें कितना बल है। प्रातःकाल जब श्र' चन्द्र ने मुह घोया तो उनके सूर्य रुपी भाल को देखक र सरस्वती बहुत प्रसन्न हुई / पूजारी ने उनको देखकर जल्दी . सेराजा क * सारी बात कह सुनायी राजा के आदेश से बलवान / सेनापति वहां आया। उसे देखकर, प्रिया के अंग को कांपता देख श्रीचन्द्र बोले, हे भद्रे ! तू डर नहीं / यह गरीब बेचारा क्या करेगा? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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