________________ .* * कुडलपुर नगर के बाहर उद्यान में रथ रखकर, नगर. में गये। उस नगर का निरीक्षण कर श्रीचन्द्र को नगर के बाहर यक्ष के ५.मन्दिर सोते अभी थोड़ी ही देर ही हुकी थी इतने में राजा की पुत्री सरस्. वती विवाह की सामग्री से युक्त आयी, उसने बीच में सोये हुये को देखकर कहा, हे श्रीदत्त मंत्रिपुत्र ! तू उठ / और इस कन्या से शादी कर / श्रीचन्द्र उठे। बलात्कार पूर्वक सरस्वती ने उनसे विवाह किया / / बाद में सरस्वती ने कहा, बाहर उ टड़ी है, चलो हम उस पर ' बैठ कर कहीं दूर चलें / श्रीचन्द्र ने कहा उटडी हांकना मैं नहीं जानता "तो रात्रि में पैदल भी चलना मुश्किल है, इसलिये प्रातःकाल चलेंगे। उनके आवाज से, यह कोई ओर है ऐसा प्रतीत होने से रत्नदीप से अच्छी तरह देखा और कहने लगी, हे नाथ ! प्रापका ललाट चंदन से लिप्त नहीं है, पाप कहां से आये हैं ? राजा ने कहा, मैं मुसाफिर हूं। कुशस्थल से पाया हूँ, तुम यहां इस तरह क्यों आयीं ? तुम कौन हो ? : तुम्हें किसका भय है ? मुझ से किसलिये विवाह किया ? सुनामिका :: और सुरुपा सखियों में से एक ने कहा, हे स्वामी ! इस नगर के अरिमदंन गजा की पुत्री सरस्वती हमेशा इस यक्ष की पूजा करती है, एक बार राजा ने अपनी गोद में बैठी हुयी पुत्री को देखकर नैमित्तिक से . पूछा कि इसके लायक वर कहां मिलेगा। वह बोला कुशस्थल के प्रतापसिंह राजा का पुत्र जिसे सेठ ने बड़ा किया है वह श्रीचन्द्र महा-त्यागी, रोषायमान हुये यहां आयेंगे / राजा मौन रहे। . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust