________________ * 88 * अपनी सूढ से राजा को पानी पीने के लिये उतारा / स्नान करके, पानी पीकर स्ववेष को धारण करके जयकलश को आवाज दी यहाँ पाओ, और फिर हाथी पर प्रारुढ़ हो गये / कुशस्थल के राजा ने सेना सहित जयकलश का पीछा किया, रात्रि तक सब जगह खोज करवायी, सब सैनिक खाली हाथ वापिस लोटे / राजा निराश होते हुये बोले 'हस्तिरत्न गया उसके लिये मेरा मन उतना दुखी नहीं, उससे अधिक दुख, जीवन रुपी रत्न को बचाने वाले, सत्य को बोलने वाला अवदूत गया उससे हो रहा है / उसका उपकार मैं कुछ भी नहीं चुका सका। उसके उपकार से दवे हुये राजा ने उसकी बड़ी प्रशंसा की / इधर जयकलश पर बैठे हुये श्रीचन्द्र राजा ने लीला करते हुए दूसरे वन में प्रवेश किया। वहां भीलों ने हस्तिरत्न छीनने के लिये कहा कि तुम कहां जा रहे हो ? चारों तरफ बाणों से भीलों को सज्ज देखकर, श्रीचन्द्र राजा स्थिर होकर, प्राते हुये बाणों का नाश करने लगे / हस्तिरत्न को श्रीचन्द्र ने इशारा किया, आज्ञा होते ही वृक्ष की शाखा को धारण कर, पत्थरों आदि के टुकड़ों से उस बलवान राजा ने भीलों को जीता / सब भीलों को दूर कर, वृक्ष के नीचे वे महान क्रान्ति वाले राजा बहुत सुन्दर दिखाई दे रहे थे / भीलों को किसने हटाया ये देखने के लिये वहां भीलनियें पायी। भील राजा की पुत्री मोहिनी श्रीचन्द्र को देखकर मोहित हो पिता से कहने लगी मेरे तो यही पति होंगे दूसरा कोई मेरा पति नहीं / जिससे भीलों के राजा ने बड़े वेग से आकर दो हाथ जोड़कर कह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust