________________ * 87 0 प्रयाण किया। सब वाजिंत्रों के नाद, से जयकलश हाथी मद से उद्दत होकर, स्थंभ को उखाड़ कर, महावत को मार कर, नगर में घरों, दुकानों, आदि को गिराता हुआ सारी नगरी को परेशान करने लगा। तब लोग पीड़ित होते हुये शोर करने लगे। उसे सुनकर प्रतापसिंह राजा ने क्या 2 हैं ? ऐसे कहते हुये महल पर चढ़कर हाथी को देखा / सैनिकों को आदेश दिया, दौड़ो 2 जल्दी पकड़ो, छल से हाथी पर चढ़कर उसे अकुश द्वारा खड़ा करो। मद से परवश बना हुप्रा हाथी सैनिकों को देखकर ओर बिगड़ा, अश्वों, रथों, हाथियों, नर-नारियों को कुचलता हुप्रा, कुशस्थल को बिलोने की तरह मथता हुप्रा, राजद्वार के नजदीक माया हुआ देखकर राजा आकुल व्याकुल हो उठा / राजा ने सपरिवार जीने की प्राशा छोड़ दी, / परन्तु ज्योंही हाथी राज द्वार के पास आया त्योही प्रवद्त ने अंकुश युक्त होकर वहां आया / . प्रतापसिंह राजा के मना करने पर तथा लोगों के हा हाकार मचाने पर भी, गज-शिक्षा में दक्ष श्रीचन्द्र स्ववस्त्र से जयकलश को कोपायमान करके, सब लोगों के भय से देखते हुये, उसके मर्म को जानने वाले ऐसे श्रीचन्द्र उसे अपने कब्जे में कर, जयकलश के कंधे पर चड़ वैठे / श्रीचन्द्र को गिराने की कोशिश कराता, डराता हुआ तथा क्रीड़ा को करता हुअा हाथी बड़े वेग से विशाल अटवी में आया, बहुत जल्दी ही अपने देश को छोड़कर वन में आ पहुंचे / तीसरा दिन था निर्मंद होकर जयकलश हाथी ने पर्वत के नजदीक स्वयं खड़े रहकर . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust