________________ * 15 110 को देख / हे पुत्री! तेरे किस वचन को याद करू / अब मुझे माता कह कर कौन बुलाएगा? हे पुत्री ! तू छोटी होने पर भी लज्जा से उत्तर नहीं देती थी / तेरा मुख कमल सदा शान्त रहता था। मैं कभी तुझे ढांटती फिर भी तू क्रोधित नहीं होती थी / तुम्हारी वह उत्तम भाव पूर्ण जिनेश्वर देव की भक्ति, नियम पालन, तप और त्याग, तेरे सिवाय दूसरी कन्या में तो देखने को नहीं मिलते / हे पुत्री ! तू चुप क्यों है ?" पिता ने कहा कि, "मेरी पुत्री रत्न के साथ जो व्यवहार हुआ है उसे विधाता भी सहन नहीं कर सकता।" इस प्रकार के विलाप सुनकर धरण भी विह्वल हो उठा / पश्चातापपूर्वक वह भी विलाप करने लगा कि मैंने क्रोध से सोच विचारे किये बिना कैसा घोर पाप कर डाला है। उसका कोई भी दोष नहीं था फिर भी मेरे निष्ठुर प्रहार से यदि वह मृत्यु को प्राप्त हो गई तो जगत में मैं स्त्री हत्यारा कहलाऊगां, हाय ! मैंने महान् पाप कर डाला।" हमेशा झूठ बोलने वाली नागीला का लोगों ने तिरस्कार किया पड़ोस की स्त्रियां कहने लगी कि जिस प्रकार साँप के मुंह में से मेंढक छूटे, उसी प्रकार श्री देवी मृत्यु पाकर सासु के पजे में से छूटेगी। इस प्रकार लोगों में उसकी बड़ी अपकीर्ति हुई / श्री देवी के पुण्य से एक योग्य वैद्य वहां आ पहुँचा / उसने पानी मंत्रित करके श्री देवीपर छांटा। उससे श्री देवी में चैतन्य आया। यह स्वरुप देख कर वैद्य ने कहा कि “अब धर्म रुपी ओषध का सेवन करो।" श्री देवी को उसके माता पिता घर ले गये अन्त समय P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust