________________ * 101 उनके सामने आया। कलाकार ने रथ को अति वेग से चारों तरफ / घुमाया / प्रतापसिंह राजा ने शूर को गणों से नीचे गिरा दिया। तुरन्त ही उसे काष्ट के पिंजरे में कैद कर दिया गया और जय कलश गंध हस्ती को अपने कब्जे में कर लिया। प्रतापसिंह राजा का जय जय कार चारों तरफ गूंज उठा / शूर की सेना चारों तरफ भाग गई / सिंहपुर नगर से शुभगांग राजा ने आकर प्रतापसिंह राजा का प्रणाम पूर्वक सन्मान किया / सबने अटवी में जाकर पल्ली को भंगकर दिया एक मूडा मोती, 56 कोटी स्वर्ण और दुसरी अमूल्य वस्तुओं को तो प्रतापसिंह ने अपने खजाने में रख लिया / शेष धन दीपचन्द और शुभगांग राजाओं को बांट दिया / वस्त्र प्रादि सेना में वितीर्ण कर दिये। उस समय राजा प्रतापसिंह चारों कलाकारों पर अति प्रसन्न होकर बोले कि, 'तुम अपनी 2 कला में पूर्ण प्रवीण हो / एक ने पक्षियों की बोली जानी, दूसरे ने मेरे मन की बात को जाना, तीसरे ने कन्या के लक्षण जानकर उसके फल बतलाये तथा चौथे ने रथ भ्रमण की कला द्वारा मुझे विजय दिलवाई। तुम्हारी कला से मुझे अपार लाभ हुआ है / तुम्हारे कला विज्ञान पर मैं अति सन्तुष्ट हूँ। तुम्हारी तीव्र बुद्धि प्रति प्रशंसनीय है / तुमने कला प्राप्त करने में जो परिश्रम किया, वह सार्थक ही है।" इस प्रकार प्रतापसिंह राजा ने उन कलाकारों की सराहना कर अति प्रसन्नता पूर्वक विशाल दान देकर उनका सन्मान किया / सूर्यवती के नाम से पल्ली के स्थल पर सूर्यपुर नाम का नया विशाल नगर बसाया / दीपचन्द राजा और शुभगांग राजा ने बहुत सी भूमि भेंट की। प्रतापसिंह राजा ने सिंहपुर नगर का निरीक्षण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust