________________ n. 1164 हो तो कहो, "सतियों में शिरोमणी पद्मिनी ने सस्मित कहा कि, "प्रापक मित्र का गूढ़ मन और गमन यह दोनों कोई भी जान नहीं सकता।" ____ कुशस्थल से सर्व दिशाओं में जाने के मार्गों में सैनिकों द्वारा प्रतापसिंह राजा ने सर्वत्र खोज करवाई, परन्तु कही भी पता नहीं मगा। तीन दिन तक किसी ने भी व्यापार, विलास आदि कुछ भी कार्य नहीं किया। श्रेष्ठी के घर तो भोजन भी नही बना / अच्छी तरह कोई वार्तालाप भी नहीं करता। सर्वत्र शोक छा गया / श्रीचन्द्र के जाने के चौथे ही दिन बाद कुशस्थल में ज्ञानी गुरु महाराज पधारे। प्रतापसिंह राजा, सूर्यवती पटराणी, लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठा मादि सर्व नरनारी वन्दन करने गये। सब यथा योग्य स्थान पर बैठे / महा नपस्वी गुरु महाराज ने धर्मलाभ का आशीर्वाद देकर धर्म देशना दी। .... देशना के अन्त में सूर्यवती ने प्रश्न किया, "हे भगवन् ! जय के भय से मैने उद्यान में पुष्पों के ढगले में पुत्र को छुपाया था, उसके बाद मेरे पुत्र का क्या हुभा ?" ज्ञान से जानकर गुरु महाराज ने कहा, "हे भद्रे ! महा पुण्य निधान, तुम्हारे पुत्र 'श्रीचन्द्र' को सुरक्षित रखने के लिए गोत्रदेवी ने स्वप्न में सूचित कर लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी को अर्पण किया था। श्रीचन्द्र के पुण्य से लक्ष्मीदरा लक्षाधिपति से कोड़ाधिपति बना / लक्ष्मीदत्त पौर लक्ष्मीवती ने भी उसे पति हर्ष से अपने पुत्र के समान रखा। उसके जन्म से पहले तुमने श्रीचन्द्र नाम निश्चित करके इस नाम की अंगूठी तैयार कराई थी। उस अंगूठी के नाम के अनुसार श्रेष्ठी ने उसका वही नाम रखा था। P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust