________________ 1. 117 110 हे राजन् ! तुमने पहले जब इसे गोद में बिठाया था तब दृष्टि में मोह से क्या पुत्र प्रेम उत्पन्न नहीं हुआ था ? श्रेष्ठी के मुख से दूसरी ख्याति सुनकर क्या तुम्हें प्रानन्द नहीं हुआ ? दानेश्वरों में भी अग्रणी श्रीचन्द्र देशान्तर गया है। इस वर्ष के अन्त में राजा होकर प्रापसे मिलेगा।" राजा प्रतापसिंह और सूर्यवती तो लक्ष्मीदत्त और लक्ष्मीवती की प्रति प्रशंसा करने लगे। श्रीचन्द्र ही सूर्यवती का पुत्र है। इस प्रकार हर्ष को प्रकाशित करती वाणी निकली। विशेषतः चन्द्रकला और मन्त्रीपुत्र गुणचन्द्र को अति आनन्द हुआ। ____कवियों ने कहा कि, 'नरसिंह राजा के कुल में सूर्य समान प्रतापसिंह राजा की सूर्यवती पटराणी का पुत्र 'श्रीचन्द्र' जगत में जय को पायें।" गुरु महाराज को सब लोग वन्दन कर अपने 2 घर गये / "अपना पुत्र श्री चन्द्र है" इस बोध के निमित्त से प्रतापसिंह राजा ने नगर में सर्वत्र महोत्सव किया / पद्मिनी चन्द्रकला किसी समय सूर्यवती के महल में, किसी समय श्रेष्ठी के महल में और किसी समय श्रीपुर में रह कर धर्माचरण करने लगी। "इस ससार में धर्म ही श्रेष्ठ बन्धु है। वह धर्म प्रिय को धर्म साधन, सामग्री प्रादि देता है, धन प्रिय को धन देता है, सौभाग्य के अर्थी को सौभाग्य देता है, पुत्रार्थी को पुत्र देता है, राज्य के भर्थी को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust