________________ #.11510 सूर्यवती ने हर्ष पूर्वक चन्द्रकला से मिल कर उसे गले लगाया और पूछा कि, 'दीपशिखा नगरी में सर्व कुशलं हैं ?" हस्तमिलाप में मिली सर्व वस्तुओं को देखकर प्रौर चन्द्रकला को लेकर प्रतापसिंह राजा के पास पायी। तब प्रतापसिंह ने पूछा कि, श्री 'श्रीचन्द्र' कहां हैं ?" चन्द्रकला मौन रही। सूर्यवती ने पूछा कि 'हे चन्द्रकला ! स्वयवर विना तुमने कैसे लग्न किया ? चन्द्र कला ने सर्व वृतान्त सविस्तार कह दिया / बाद में वह अपने घर लौट आयी। - श्रेष्ठी लक्ष्मीदत्त, मित्र गुणचन्द्र और सैनिकों ने श्रीचन्द्र की बहुत खोज की, परन्तु उनका कहीं भी पता नहीं लगा। इससे सब दुःखी हुए। जैसे अल्प जल में मछली तड़फती है उसी प्रकार गुचचन्द्र को कहीं भी चेन नं पड़ने से, श्रेष्ठी ने कहा कि, "मैं ही कदाग्रह किया। जिससे दुःखी होकर धीचन्द्र कहीं चले गये है।" , : लक्ष्मीवती ने कहा, 'किसी भी समय अपने मुख से कोई चीज नहीं मांगी थी, परन्तु कल ही उसने लड्ड मांगे और अपने हाथ से तोड़ कर सबके पास भेजे। परन्तु मैं समझ न सकी कि कल श्रीचन्द्र जाने वाले हैं / " श्रीचन्द्र के जाने की बात तत्क्षण नगर में सर्वत्र फैल गई। . .. ....... अतिशय दुःखी और रुंदन करते गुणचन्द्र ने चन्द्रकला के पास माकर पूछा कि "हे स्वामिनी ! मेरे मित्र कहां गये हैं ? यह जानती P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust