________________ ....चन्द्रकला के शुभ. वचन ग्रहण कर के, स्नेह वार्ता करके शकुन के लिए फल स्वीकार कर द्रव्य से युक्त नित्य के वेष में नगर से बाहर निकल कर श्री 'श्रीचन्द्र' ने जिस दिशा में शुभ पक्षिों ने शकुन किये थे उस दिशा में विशुद्ध हृदय से प्रयाण किया / .... - प्रभात के समय श्रीचन्द्र ने एक प्रवधूत को देखा। उसे उचित मूल्य देकर श्रीचन्द्र ने उसका वेष ले लिया और अपना वेष छुपा कर उस प्रवधूत के वेष में ही उत्तर दिशा की ओर प्रयाण किया। ग्राम, नगर, उद्यान, नदी, सरोवर, गिरी आदि में भ्रमण करते हुए उन्होंने स्थान 2 पर श्रीचन्द्र का रास सुना। कहीं राधावेघ का रास सुनने को मिला,कहीं तिलक मंजरी का दिया उपालम्भ सुना, कभी वार्ता काव्य गीत और सुवेम महावेग अश्वों तथा पद्मिनी चन्द्रकला मादि के वर्णन का श्रवण किया / स्थान 2 पर अपने गुणों को सुनते हुए वे आगे बढ़ते गये। प्रतापसिंह राजा के समभ राजसभा में धीर मन्त्री युक्ति पूर्वक विवाह के लिए श्रीचन्द्र को ले जाने के लिए उनका आदेश मांगा। वहां तो दीपचन्द्र राजा का सेनापति जो चन्द्रकला को छोड़ने के लिए माया हुना था, उसने चन्द्रकला की सर्व हकीकत प्रतापसिंह राजा से निवेदित की। वह सर्व हकीकत प्रतापसिंह ने पटरानो सूर्यवती को कही। हर्ष से सूर्यवती ने कहा कि, "चन्द्रकला ! मेरी ही बहिन की पुत्री चन्द्रकला है, राजा की आज्ञा लेकर सूर्यवती महोत्सव पूर्वक श्रीचन्द्र के महल में आयी। - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Jun Gun Aaradhak Trust