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________________ #.106 10 श्रीपुर में प्राये अपने स्वामी को देखकर दोनों अश्वों ने जोर से हिनहिना कर हर्ष व्यक्त किया। श्रीचन्द्र के नयनों में प्रांसु आ गये / जब स्नेह से प्रश्वों को थपथपा रहे थे तो अश्वों के भी प्रांसू बह गये / दोनों अश्वों का सन्मान करके, उनके गुणों की प्रशंसा करके कहा कि, "हे भद्रो ! तुम दोनो मेरे हस्त समान हो / मेरे चित्त नेत्र और हस्त से कभी भी अलग नहीं होते, तो भी मेरा ऐसा समय पाया है। मैं वरदान से देवदार हूं। अतः तुम गायक के साथ जाओ।" वे 'पंचभद्र' अश्व श्रीचन्द्र के चित्त को अनुसरण कर आगे बड़े उन अश्वों के गुणों को याद करके श्रीचन्द्र का हृदय भर गया। उन्होंने गुणचन्द्र को सर्वाधिकारी नियुक्त किया। धनंजय को सेनापति नियुक्त किया। दूसरों को भी योग्य स्थलों का अधिकारी नियुक्त किया किले और महल में कार्य करने वाले सेवकों को यथा योग्य स्वर्ण धन, दान आदि देकर यथा योग्य हित शिक्षा देकर श्रीपुर को स्वर्ग के समान बना कर, परदेश जाने की इच्छा वाले श्रीचन्द्र राजा के समान सर्व हस्तियों प्रश्वों, 15 हजार अंग रक्षकों, पांच सो बन्दीजनों, से युक्त शीघ्र ही . कुशस्थल में अपने महल में पधारे। .. धीर मंत्री ने श्री 'श्रीचन्द्र' को नमस्कार करके गुणचन्द्र के साथ लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी के पास आकर विनंती की। श्रेष्ठी ने कहा कि "हे धीर मन्त्री ! दो दिन की राह देखो श्रीचन्द्र प्रतापसिंह राजा से भेंट करेंगे तब भाप भी जाना और राजा से विनंति करना / सभी कार्य राजा के. पादेशानुसार ही होगा।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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