________________ * 10714. ' चित्रा में श्रीचन्द्र ने विचार किया कि "मेरी परतंत्रता कों धिक्कार हो। मैंने दिया ही क्या है ? परन्तु यहां पर उसका भी विचार हो रही है। . : . . . ..... .. अब मेरे लिए यहां रहना ऐसा है जैसे चारपाई में खटमल आदर: रहित रहने से क्या लाभ ?. साहस स कौनसी सिद्धि नहीं मिलती। सुविद्या वाले को विदेश क्या है ? - समर्थ के लिए कौनसी चीज भारी है। पृथ्वी भ्रमण से विविध चरित्र को जाना जा सकता है / आत्मा; के समय यहां से प्रयाणं कर दूंगा। पिता को जानकारी दिये बिना ही मुझे प्रस्थान करना चाहिये तथा गुणचन्द्र 'जानेगा तो वह मुझे जबरदस्ती से रोंक लेगा अथवा मेरे साथ आयेगा तो उसके माता-पिता का उससे मेरे कारण वियोग होगा। अत: उसे बताने से भी क्या लाभ होगा। पद्मिनी को तो जानकारी देनी चाहिये नहीं तो मेरे वियोग से वह अति दुःखी होगी / वह मेरे बिना कैसे रहेगी। मर लिए उसने माता, पिता, मामा और राज्य का भी त्याग किया। राजकन्या: का. मेरे प्रति कितना स्नेह है, फिर मैं उसे हरिणी: की तरह यहां से. और वहां से कैसे वियोगी कर / उसे सर्व वृतान्त: कह कर सर्व शिक्षादि देकर विदा ग्रहणं करूंगा।" * उसी समय : गुणचन्द्र ने प्राकर वितंति किः "हे मित्र...सेक लक्ष्मीदत्तजी के विचार जानकर बुद्धिशाली वीणारंवं ने मेरे द्वारा . मापश्री को विनंति की है कि, जयकुमाररामादि के कहने पर.: मैंने प्रश्नों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust