________________ नर नारी अपने 2 घरों को रवाना हुए / अश्वों से आनंदपूर्वक वीणारव * प्रश्वों से युक्त रथ लेकर अपने स्थान पर गया। 1. दूसरी तरफ लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी ने सेवकों के साथ : विचार किया कि "पंचभद्र अश्व दुबारा पुष्कल द्रव्य व्यय करने पर भी श्रीचन्द्र को प्राप्त नहीं हो सकेंगे। प्रति उदारता के कारण ऐसे उत्तम दोनों अश्न दान में दे दिये हैं प्रश्वों का कितना भी मूल्य क्यों न देना पड़े। परन्तु मन्हें वापिस ले लेना चाहिये।".. . ... लक्ष्मीदत्त ने श्रीचन्द्र से कहा. कि "तुमने दान दिया यह तो: मच्छा किया परन्तु वह दान राजा के दान से भी अधिक है / जयकुमार द्वेष से तेरे छिद्र देखता है। ऐसा धीर मन्त्री ने कहा था क्या यह तुझे मालुम नहीं है ? जिस रथ की सहायता से इतनी दूर 2 को तुमने भूमि देखी / ऐसे उत्तम अश्वों को जैसे-तैस किस प्रकार दे सकते हैं / प्रश्वों और रथ को वापिस मंगवा लो। और इनका उचित मूल्य में दो। राजा को पता चलेगा तो वह नाराज होगा।" क्योंकि ऐसे मश्वों का आनन्दं राजा ने भी नहीं भोगी :: :: : : :: मन में कुछ विचार कर विनयः पूर्वक श्रीचन्द्र ने कहा कि, पिताजी.! इस अपराध को क्षमा करो। दान दिया हुआ वापिस . जो मैं हलके में भी हलका मनुष्य कहलाऊंगा। वह रथ किसका ? बे: अश्व किसके ?. धन प्राभूषण, प्रादि: किसके? वे सब तो अपय 'और' भाग्य से मिले हैं और मिलेंगे।": ऐसा कहकर श्रीचन्द्र अपने महल में . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S, Jun Gun Aaradhak Trust