________________ *1051 घिरा हुआ है, इस कारण से इन सब को भी आपके साथ तुलना नहीं की जा सकती।" - तब सन्तुष्ट होकर श्रीचन्द्र ने कहा कि "हे वीणारव ! इच्छानुसार रथ, अश्व, धन, वस्त्र गांव आदि मांग लो।" / मूढ़, मंद बुद्धि वाले वीणारव ने वायुवेग अश्व को मांगा। अल्प पुण्य वाले को विवेक कहां? क्योंकि कर्म के अनुसार ही बुद्धि होती है। श्रीचन्द्र ने कहा कि "यह तुमने क्या मांगा ? अच्छा" कह कर गुणचन्द्र को कहा कि, "श्रीपुर से रथ को लाकर वायुवेग अश्व दे दो भौर दूसरे महावेग को यहीं रख दो। . गुणचन्द्र रथ ले कर पा गया, तब श्रीचन्द्र ने कहा, 'हे वीणारव ! एक प्रश्व से तेरी कार्य सिद्धि नहीं होगी अतः महा बलवान. वायुवेग, पोर महावेग प्रश्वों से युक्त यह रत्न जडित सुवेग रथ तुम ने लो।" इसके अलावा और भी बहुत सा धन देकर उसका सम्मान, किया। "चिरंजीव रहो" इस प्रकार की जयजयकार गूंज उठी। / / .. तपश्चात् श्रीचन्द्र ने गौरव पूर्वक महाजनों, कवियों आदि को भोजन करवा कर वस्त्र और स्वर्ण से सब का सन्मान किया / उसकी उत्कृष्ठ उदारता देख कर सबने आश्चर्य चकित हो कर कहा कि "अहो भाग्य ! राजा तथा राजकुमार भी इतना दान देने में उदार नहीं है / यह श्रेष्ठी पुत्र होने पर भी याचना करने से कई गुणा अधिक देता है।": नगर के नर नारी सुन्दर वस्त्रों और अलंकारों से शोभते हुए नगर के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust