________________ राधावेध की साधना साध कर तिलकमंजरी द्वारा वरमाला पहनाये जाने पर मित्र सहित रथ पर आरुढ़ होकर कुशस्थल पाना, राजा द्वारा धीर मंत्री को प्रामन्त्रण के लिए भेजना वह सब विस्तार से गाने लगा। वह संगीत कानों को अत्यन्त प्रानंदकारी था स्थान 2 पर अंष्ठि आदि गायक को धन देने लगे। - वीणारव ने काव्य के अन्त में अति हर्ष से श्रीचन्द्र के गुण गान के अनेक श्लोक बोले वे कहने लगा: 'हे श्री 'श्रीचन्द्र' ! तुम्हारे चित्त में विशुद्ध बुद्धि है ! मुख में सुन्दर वाणी है ! ललाट में भाग्योदय है ! गृह में लक्ष्मी है ! भुजाओं में वीरता भरी है, वाणी में सत्य रहा हुआ है, हस्त में दान रहा हुआ है, शरीर में कान्ति प्रकाशित हो रही है, हृदय में अरिहंत परमात्मा विराजमान हैं, क्रिया में दया भरी हुई है, इससे आपकी कीर्ति को रहने के लिए आपमें स्थान न मिलने पर वह कीति दशों दिशामों में फैल गई है। .. . ____ हे श्रीचन्द्र ! तुम्हारे मुख में कमल बुद्धि से, हृदय में गंभीर समुद्र की शंका से नाभि में पद्मद्रह की शंका से, दोनों नयनों में खिले हुए कमल की शंका से, शरीर में कल्प वृक्ष की शंका से लक्ष्मी ने निवास किया हुआ है। हे श्रीचन्द्र ! समुद्रः खास है, चन्द्रः कलक से दुषित है, सूर्य इष्म कान्ति वाला है, कल्पतरु लकड़ी, है, चिन्तामणी; पत्थर है, कामधेनु पशु है, मेरु धन के ढेर से अदृश्य है; अमृत शेषनाग द्वारा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust