________________ #.103 10 कई लोग श्रीचन्द्र के पुण्य मौभाग्य का वर्णन कर रहे थे। पौर कई पद्मिनी के मुख कमल की प्रशंसा कर रहे थे / सर्वत्र हर्षोल्लास छा गया। न जयकुमार ने धीर मन्त्री को बीणारव के पाथ, जानकर * गायक वीणा रब को जल्दी से बुलाकर कहा कि, “तू ने जो श्रीचन्द्र का रास रचा है / वह उसे सुनाना / जब श्रीचन्द्र तुम पर संतुष्ट होकर मन इच्छित मांगने का कर. तब उसके रथ के दो अश्वों में से एक अश्व को तुम मांग लेना। यदि तू ऐसा करेगा तो हम तुझे बहुत इनाम देंगे / मेरा यह कार्य तुझे अवश्य क ना होगा।" राजकुमारों के भय व दाक्षिण्यता से वीणारव ने उनकी बात स्वीकार करली। यह कपट जाल श्रीचन्द्र के रथ की अपूर्व गति को रोकने के लिए जयकुमार ने रचा था। जैसे भवितव्यता होती है उसी प्रकार की बुद्धि उत्पन्न हो जाती है। दूसरे दिन श्रेष्ठी द्वारा चतुराई से अनुमति लेकर वीणारव गाने के लिए तैयार हुआ। उस रास को सुनने के लिए मन्त्री, श्रेष्ठी, स्वजन प्रादि सर्व प्रानन्द पूर्वक आये थे / पुत्र वधुओं से युक्त लक्ष्मीवती भी उत्कंठा पूर्वक बैठी थी / परिवार से युक्त धीर मंत्री और अनेक नगर के लोग बैठे थे। गायक वीणारव ने प्रथम राधावेध के समय का वर्णन किया / राजा महाराजा और राजपुत्रों के नाम, कुल, नगर आदि राधावेध साधने में निष्फल, सर्व के समक्ष श्याम मुख वाले हुए, हास्यरस की जिंस प्रकार उत्पत्ति हुई, तिलकमंजरी तिलकराजा आदि को दुःख हुआ, तब श्रीचन्द्र का आगमन, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust