________________ 1009 व सर्व लोगों को नमस्कार किया। और सबसे विदा मांगी। / कन्या को यथा योग्य शिक्षा देकर अश्रु युक्त नेत्रों वाले लोग वापिस लौटे। चन्द्रकला को प्रदीपवती राणी तथा माता चन्द्रावती राणी ने कुलांगना के योग्य हित शिक्षाए दी कि शास्त्र में कुल वधु का धर्म हस प्रकार बताया है कि "हे पुत्री ! गुरु और पति के आगमन के समय खड़े होकर स्वागत करें। सदैव नम्रता पूर्वक वार्तालाप करें।" इस प्रकार हितशिक्षा देकर सजल नयनों वाली दोनों महाराणियां बापिस लौटीं / कुशस्थल जाने को इच्छुक श्रीचन्द्र ने परिवार सहित पद्मिनी को समझा कर, उन्हें तथा मित्र गुणचन्द्र और सैन्य प्रादि को पीछे छोड कर स्वयं रथ पर प्रारुढ़ होकर वेग से उसी रात्रि श्रीपुर में पहुंच गया / रथ को वहां छोड़ कर वह कुशस्थल जाकर माता पिता के चरणों में उसने नमस्कार किया। लक्ष्मीदत्त व लक्ष्मीवती उसे देख कर खिल उठे और कहने लगे कि "हे पुत्र ! तेरे वियोग के दुःख से हमारे पांच दिन इस प्रकार बीते कि मानो पांच वर्ष व्यतीत हो गये हों। इतने दिन तू सुख को भोगता हुआ कहां रहा ? क्या तू अपनी इच्छा से रुका या किसी ने तुम्हें बल पूर्वक रोक लिया था।" श्रीचन्द्र ने कहा, "आपश्री की कृपा से सर्वत्र जय, सौख्य और सम्मान प्राप्त होता है / में किसी स्थल पर सुख पूर्वक क्रीड़ा कर रहा था। वहां वरदत्त श्रेष्ठ मुझे जबरदस्ती से अपने घर ले गये और वहां बड़ा महोत्सव हुमा / आज प्रातः मैं उनकी प्राज्ञा लेकर आया हूं।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust