________________ *015 लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी ने कहा कि "तेरा अद्भुत चारित्र जान कर राजा ने तुझे रत्नपुर नगर भेंट में दिया है। आज शुभ दिन तुम प्रता सिंह राजा से भेंट करो।" "पूज्यों का आदेश शिरोधार्य हो।" कह कर श्रीचन्द्र मौन हो गये। लक्ष्मीवती श्रीचन्द्र के शरीर और वस्त्रों पर से रज को हटा रही थी तो वहां हाथ के ऊपर मोंढला बांधा हुआ देखा / हर्षित होकर उसने लक्ष्मीदत्त श्रेष्ठी से कहा "अपने पुत्र के हाथ में विवाह सूचक कुछ बंधा हुआ दिखाई देता है।" लक्ष्मीदत्त ने कहा कि, "हे वत्स ! हमें प्रानन्द होवे ऐसी कोई वधाई दो।" श्री 'श्रीचन्द्र' ने कहा कि मेरे हाथ में ज्योतिषी ने मलम्य लाभ प्राप्त कराने वाली प्रभावशाली कोई वस्तु बांधी है / क्रीड़ा में आसक्त श्रीचन्द्र कभी अपने घर रहते, कभी श्रीपुर में और किसी समय उद्यान में घूमने के लिए चले जाते थे।... , एक दिन श्रीचन्द्र तो अपने महल के ऊपर झरोखे में बैठे और श्रेष्ठी लक्ष्मीदत्त नीचे थे कि इतने में बाजिन्त्रों का मधुर नाद सुनाई * दिया। पद्मिनी गुणचन्द्र आदि सभी लोग पद्मिनी चन्द्रकला. आदि को देखकर आश्चर्यचकित हो रहे थे। वे पूछने लगे कि "ये कहां जा रहे हैं ?" जव वे सब श्रेष्ठी लक्ष्मीदत्त के घर के पास आये तो कोलाहल सुनकर श्रेष्ठी ने पूछा कि "यह क्या है ? बोहर आकर सेना को देख कर श्रेष्ठी व्याकुल हो उठे।" : . . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust