________________ 98 द्वारा धिरे हुए श्री श्री चन्द्र' हस्ति पर प्रारुढ होकर, लग्न मंडप में माये / उत्तम लग्नांश के समय ज्योतिषी ने पमिनी चन्द्रकला के साप भी चन्द्र का हस्तमिलाप करवाया। दीपचन्द्र राजा ने अश्व, हाथी, रथ आदि चतुरंगी सेना, छत्र, चामर आभूषण आदि सर्व हस्त मिलाप के समय हर्ष पूर्वक दिये / चन्द्रवती रानी ने घरणेन्द्र द्वारा प्रदान किया हुआ देवी हार, भी 'श्रीचन्द्र, को दिया / चन्द्रकला के भाई वामांग ने सिंहपुर से लायी हुई वस्तुए-पांच वर्ण के 500-500 अश्व आदि बड़े उत्साह से समर्पित किए। श्री 'श्रीचन्द्र' को 16 नवबद्ध नाटक चतुरा कोविदा नंदा आदि 72 सखियों, छत्र चामर आदि राज्य के सवं चिन्ह भी भेंट किये। प्रातःकाल होने पर मुकुट पारि से सुशोभित होकर श्री 'श्रीचन्द्र' वे हस्ति पर प्रारुढ़ होकर दीपशिखा नगरी में सर्वत्र भ्रमण किया / इस समय स्थान 2 पर गीत नृत्य हो रहे थे। सर्वत्र जनता उनके रुप बावण्य की मुक्त कण्ठ से स्तुति कर ही थी। / कनकदत्त श्रेष्ठी की लघु पुत्री ने श्रीचन्द्र पर अनुरक्त होकर पिता से कहा कि 'ये श्रीचन्द्र ही मेरे पति हों। कनकदत्त श्रेष्ठी ने कहा "क्या तू मूढ़ तो नहीं हो गयी ! श्री चन्द्र को पद्मिनी के हस्तग्रहण के लिए दीपचन्द्र राजा ने छः पहर तक P.P.AC.Gunratnasuri M.S.A Jun Gun Aaradhak Trust