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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / उठा कर अपने नगरको देखना आरम्भ किया / इतनेमें एक बड़ी भारी मछली तख्तेके साथही उसको निगल गयी.। उस समय नरकके समान उस मछलीके पेट में पड़ा हुआ धनद सोचने लगा,- "हे जीव ! यह सब तुम्हारे नसीबका खेल है / इसलिये तुम और न कुछ करो, केवल उसी गाथाको याद किया करो।" इस प्रकार विचार करनेके बाद उसने आपत्ति निवारण करनेवाली मणिका स्मरण किया / उसके प्रभावसे मछुएने उसी क्षण उस मछलीको पकड़ लिया। इसके बाद मछुओंने उसे एक जगह किनारे पर ले जाकर उसका पेट फाड़ डाला। पेट फटते ही मछुओंने उसके अन्दर एक पुरुषको देख, मनमें बड़ा आश्चर्य माना। तदनन्तर उसे बाहर निकाल, पानीसे नहला कर, स्वस्थ कर, उन लोगोंने उस नगरके राजाको यह सारा हाल कह सुनाया। राजाको भी यह कहानी सुनकर बड़ा अचम्भा हुआ और उन्होंने उसी समय धनदको अपने पास बुलाकर पूछा,- "हे भद्र ! यह अचम्भा क्योंकर हआ ? तुम कौन हो ? इस मत्स्यके उदर में तुम कैसे चले गये? यह सब सच-सच कह सुनाओ, क्योंकि मुझे इस बातका बड़ा भारी आश्चर्य हो रहा है।" ...... धनदने कहा-महाराज ! मैं जातिका बनियाँ हूँ। जहाज़ टूट जानेपर मैं उसके एक तख्तेके सहारे किनारे आ लगा। इतने में एक मछली मुझे निगल गयी। मछुओंने उसे पकड़ कर उसी क्षण उसका पेट फाड़ डाला और मुझे उसके अन्दर देख, विस्मित हो आपके पास ले आये। यही. बात है।" इसके बाद राजाने उसे सोनेके पानीसे नहलवा कर शुद्ध बनायाः और उसकी सुन्दरताके कारण उसे अपने पास रख लिया / उसो दिन उन्होंने उसका नाम मत्स्योदर रखा, जो वास्तवमें :यथार्थ ही था, उसीकी प्रार्थनाके अनुसार राजाने उसे अपना पानखवास बनाया। उसने बिना अपना असल हाल किसीसे कहे, वहाँ बहुतसा समय बिता दिया। - एक दिन धनदका अनिष्ट करनेवाला. सुदत्त नामका व्यापारी इन धनदक AC.Gunratnasun 11 Gun Aaraanak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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