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________________ श्रीपलानर जग आराममा केन्द्र निवा द्वितीय प्रस्ताव। मित्र धनद शौच करनेके लिये मञ्चपर जाकर बैठे हुए थे, वे अभी तकलौट फर नहीं आये। कहीं वेसमुद्र में तो नहीं गिर पड़े 1" ऐसा कहकर उसने लोगोंको दिखलानेके लिये अपने आदमियोंसे चारों तरफ़ खोज़ करवायी, पर कहीं धनदका पता नहीं लगा। तब वह मधुर वचनोंसे उसकी प्रियाको ढांढस बंधाने लगा / एक दिन उसने तिलकसुन्दरीसे कहा,“भद्रे ! देवयोगसे तुम्हारे पतिकी मृत्यु होगई, इसलिये अब तुम मेरी पत्नी बन जाओ।" यह सुनतेहो उस चतुरस्त्रीने विचार किया,-"अवश्यही इसी दुष्टने मेरे रूप पर मोहित होकर मेरे पति को मरवा डाला है। हो सकता है, कि यह मेरे ऊपर ज़ोर ज़बरदस्ती करके मेरा शील-भङ्ग करे, इसलिये इसे कुछ न-कुछ इसे जवाब दे देना ही ठीक है। कालमें विलम्ब होनेसे सब मङ्गलही होगा / कहा भी है, कि: ..... तणेन लभ्यते यामो, यामेन लभ्यते दिनम् / .... ... ..... दिनेन लभ्यते कालः कालः कालो भविष्यति / / 1 // ( अर्थात्-‘एक क्षणका समय मिल जाने से पहर भरका समय मिल जाता है। एक पहरकी मुहलत मिलनेसे सारा दिन मिल जाता.. है / एक दिवसका समय मिल जाये, तो फिर बहुतसा समय मिल. जाता है. और उसका परिणाम दुष्टों के लिये काल रूपही हो जाता है।" ...ऐसा विचार कर, उसने सार्थवाहसे कहा, "हे सार्थपति ! तुम मुझे अपने नगरमें ले चलो। वहाँके राजाकी आज्ञा लेकर मैं तुम्हारी स्त्री बन जाऊँगी। यह सुन, उसने सानन्द उसकी बात मान ली और मनमें विचार किया, - "मैं अपने नगरमें पहुँचकर राजाको धनादिसे सन्तुष्ट कर अपना मनोवांछित पूरा कर लूंगा।" ... . .....इधर जब उस दुष्टने धनदको समुद्र में गिरा दिया, तब उसे देवयोगसे तत्काल ही एक पहलेके टूटे हुए.जहाजका तख्ता हाथ लग गया। उसी तख तेको बड़ी मज़बूतीसे अपनी छातीसे लगाये हुए, वह तरङ्गोंमें पहता और उछलता हुआ पाँच दिन बाद अपने नगरके समीप आ पहुँचा। इससे उसके मनमें बड़ा आनन्द हुआ और उसने सिर ऊपर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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