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________________ यद्यपि जैन समाजमें अनेक सजन उद्यापन करते रहते हैं। उसके लिये यथेष्ट धनभी खर्च करते हैं; पर उस में उपयोग न रखनेके कारण बहुधा त्रुटी रही जाती है। उद्यापन करनेका क्या उद्देश है ? किस तरह विधि-पूर्वक करना चाहिये ? इससे क्या लाभ होता है ? इत्यादि बातोंको पहले श्रद्धा पूर्वक अच्छी तरह समझ लेना चाहिये / जो सजन इन बातोंको न समझकर उद्यापन करते हैं, वे खूब ख़र्च करके भी उसका पूरी तरह लाभ नहीं ले सकते। अतएव उद्यापन करने वाले सजनोंको उपर्युक्त बातों की ओर अवश्य ध्यान देना चाहिये / श्रीमान्ने उपर्युक्त बातोंके लिए पहलेसेही विद्वानोंसे परामर्श कर लिया था, अतएव उद्यापनके वास्तविक रहस्यको आप अच्छी तरह समझ गये थे। आपने उद्यापनके विधि-विधानका काम-श्रीमत् परम पूजनीय जंगम युगप्रधान व्याख्यान-वाचस्पती, भट्टारक श्री१००८ श्रीजिनचारित्र सूरीश्वरजीके आधिपत्यमें रखा था। इसलिये विधिविधानके काममें किसी तरहकी त्रुटी रह जानेकी आशंका नहीं थीं। आप आचार्य महाराजके पूर्ण भक्त हैं, आचार्य महाराजकी आज्ञा शिरोधार्य रखते हैं। अतएव आचार्य माहाराज जिस तरह विधिके लिये विधान करवाते गये उसी तरह आप उत्साह पूर्वक करते गये। : उद्यापनका काम शास्त्रानुसार विधि-विधानके साथ करना और इस कार्यमें किसी तरहकी त्रुटी न रह जाये, इसलिये आपने एक सालके पहलेसे ही उद्योग करना आरंभ कर दिया था। उद्यापनके काममें लाये जाने वाली चीज़ आप धीरे-धीरे बनवाते गये / आपने . अपने शौकसे एक चाँदी-सोनेका सिंहासन बनवाया उसके लिये धन खर्च करनेमें ज़राभी कमी न रखी। अन्दाजन उसके लिये आपने * सात आठ हज़ार रुपया खर्च कर दिया। सिंहोसन भी एक अतीव रमणीय आदर्श चीज़ बनी। इसके सिवा और भी अनेक चीजें बनवाई। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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