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________________ षष्ठ प्रस्ताव। इस प्रकारकी कथा सुनाकर स्वामी श्रीशान्तिताथने चक्रायुध ___ राजासे कहा,-हे राजन् ! पहले कहे हुए बारहोंवत गृहस्थोंके लिये , बतलाये गये हैं। विवेकी मनुष्योंको उन व्रतोंका पालन कर, अन्तमें संलेखना करनी चाहिये। गृहस्थ-धर्मका आराधन कर, बुद्धिमानोंकोअन्तमें सर्व विरति ग्रहण करनी चाहिये। ऐसी शुद्ध संलेखना सिद्धान्त-ग्रन्थोंमें बतायी गयी है, अथवा श्रावककी दर्शन (समकित)आदिग्यारह प्रतिमाएँ वही करनेको भी शुद्ध संलेखना कहते हैं / इन प्रतिमाओंका वहन न करे, तो में सन्थारामें रह कर भी दीक्षा ग्रहण कर लेनी चाहिये / इसके बापूचात समयमें वृद्धि पाते हुए शुभपरिणामके साथ गुरुके निकट विविध अ पहण कर, गुरुके मुंहसे आराधना ग्रन्थोंको सुनना चाहिये। व्य जीवोंको चाहिये, कि अपने मनमें निर्मल संवेग-रङ्ग लाकर शुमनसे इस प्रकार संलेखना करें और उसके पाँचों अतिचारोंका वर्जन करें। उन अतिचारोंके नाम और अर्थ इस प्रकार हैं,-पहला. . इहलोकाशंसा-प्रयोग अर्थात् 'यदि मैं मनुष्य-भव प्राप्त करूँ, तो अच्छा है, ऐसा मनमें विचार करना, पहला अतिचार है। दूसरा-परलोका. शंसा-प्रयोग अर्थात् 'परभवमें मुझे उत्कृष्ट देवत्व प्राप्त हो, तो ठीक है' ऐसा विचार करना दूसरा अतिचार है। तीसरा-जीविताशंसा. प्रयोग अर्थात् पुण्यार्थी जन जो अपनी महिमा बखानते हों, उसे देखकर अधिक दिन जीनेकी जो इच्छा होती है, वहीं तीसरा अतिचार है। चौथा--मरणाशंसा-प्रयोग अर्थात् अनशन ग्रहण करने बाद क्षुधा आदि पीड़ासे जल्दी मर जानेकी जो अभिलाषा होती है, वही चौथा अतिचार है। पाँचवा कामभोगाशंसा प्रयोग अर्थात् उत्तम शब्द, रूप, रस, स्पर्श और गन्धकी जो इच्छा होती है, वही पाँचवाँ अतिचार है। पहले सुलसको कथामें जो जिनशेखरका वृत्तान्त कहा गया है, उसे ही संलेखनाके विषय में दृष्टान्त समझना।” इस प्रकार संलेखनाके सम्बन्ध में श्रीशान्तिनाथ जिनेश्वरके कहे हुए धर्मोको सुनकर, सारी सभाको ऐसा आनन्द हुआ, मानों सब पर अमृत बरस गया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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