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________________ ~ irm woman श्रीशान्तिनाथ चरित्र। ज़िक्र आया है, वह पद्मलेश्यावाला था। वह निरन्तर पराये धनका हरणकर अपनी जीविका निर्वाह करता था। एक दिन वैरसिंहके सैनिकोंने उसे बल पूर्वक मार डाला / वही मरकर कितने ही भवोंमें तिर्यंच गतिमें भ्रमण करता हुआ इस भवमें तुम्हारे रूपमें प्रकट हुआ है। पूर्वभवमें तुमनें पराया धन हरण किया था। इसीलिये तुम्हें इस भवमें धनकी प्राप्ति नहीं हुई। कहा भी है "अदत्तभावाद्धि भवेद्दरिद्री, दरिद्रभावाच्च करोति पापम् / ___ पापं हि कृत्वा नरकं प्रयाति, पुनर्दरिद्री पुनरेव पापी // 1 // " अर्थात् —“दान नहीं करनेसे मनुष्य दरिद्र होता है, दरिद्रया कारण वह पाप करता है और पाप करके नरकको जाता है / निकलकर फिर दरिद्री और पापीही होता है। “बीच-बीचमें तुम्हें धन मिलता रहा ; पर वह भी नष्ट होता गया,-. तुम्हारे पास नहीं रहने पाया। अबके सुपात्रको दान देनेके प्रभावले . ही, हे राजन् ! तुम्हारी गयी हुई लक्ष्मी और यह राज्य तुम्हें प्राप्त हुआ ___ है। कहा भी है, कि "सुपात्रदानेनभवेद्धनाढ्य, धनप्रयोगेण करोति पुण्यम् / पुण्यप्रभावेण जयेच्च स्वर्ग, स्वर्गे सुखानि प्रगुणी भवन्ति / / 1 // " अर्थात्- “सुपात्रदानके प्रभावसे मनुष्य धनाढ्य होता है / धन पाकर वह पुण्य करताहै / पुण्यके प्रभावसे वह स्वर्ग जाता है और स्वर्गमें उसे बहुतेरा सुख मिलता है। ___ इस प्रकार गुरुके मुंहसे अपने पूर्व भवकी बात सुन, प्रतिबोध प्राप्त कर, सूरिको प्रणाम कर, घर जा, अपने पुत्रको राज्य पर बैठा; व्याघ्र राजाने उन्हीं गुरुसे दीक्षा ग्रहण कर ली। इसके बाद चारित्रकी आराधना कर, समाधि मरण द्वारा मृत्युको प्राप्त हो, वह देवलोकको चले गये। वहाँसे आकर वह मनुष्य-जन्म प्राप्त कर, मोक्षको प्राप्त होंगे। सत्पात्रदान-सम्बन्धिनी व्याघ्र-कथा समाप्त / .. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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