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________________ 378 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / nnnnn Manmanna बाद उन्होंने पिताको प्रणाम कर कहा,-"पिताजी ! उस दिन तुम्हारा जो पुत्र घरसे निकल भागा था, मैं वही शूरपाल हूँ। यह राज्य तुम्हारा ही है। मैं तुम्हारा सेवक हूँ। मैंने तुम्हें पहचान कर भी जानबूझ कर तुम्हें मजदूरी करने दी, मेरी यह अविनय क्षमा करना।" शीलमतीने भी सबको प्रणाम कर कहा, "मैंने आप लोगोंके वचन नहीं मान कर आप लोगोंको दुखी किया, मेरा यह अपराध आप लोग / क्षमा करेंगे। ससुरजी महाराज ! मैने जो आपके कहनेसे भी उनी अँगिया नहीं उतारी, वह अपने पतिकी आज्ञा उल्लंघन होनेके ही म. से, इसका और कोई कारण नहीं है।" ___ यह सब बातें सुन, महीपालने अत्यन्त हर्षित हो, अपने पुत्रो पालको पहचान कर कहा,-“हे पुत्र! तुम्हें यह राजलक्ष्मी ही पुण्यके प्रभावसे प्राप्त हुई है, इसलिये तुम चिरकाल तक इसे करो। तुम्हें देख कर ही मैं अत्यन्त सुखी हो गया / " यह कह, रे नीतिको जाननेवाले महीपालने स्वयं उठकर अपने हाथों शूरपालव / उठाकर सिंहासन पर बैठा दिया और राज्य पर बैठे हुए पुत्रको पिता भी नमस्कार करता है, इसी नीतिके अनुसार महीपालने भी शूरपालको नमस्कार किया। इसके बाद महीपालने मधुर वचनोंसे शीलमतीसे कहा,-"बेटी ! इस संसारमें ही तू ही धन्य है ; क्योंकि तेरे सारे असंभव मनोरथ सिद्ध हो गये ; इसलिये तू स्त्रियोंमें रत्न है। .. तूने अपने शीलकी ख ब रक्षा की और पतिकी आज्ञाका अक्षर-अक्ष पालन किया, इसलिये तेरे समान इस दुनियाँमें दूसरी कौन स्त्री हैली जब महीपालने उसकी ऐसी प्रशंसा की, तब उसने कहा,-"पिताजी ! आपलोगोंने जो मेरी उपेक्षा की, वही मेरे लिये हितकारक हो गयी। उस दिन आपने मेरा अपमान नहीं किया होता, तो आपके पुत्र परदेश क्यों जाते ? उन्हें राज्य क्यों कर मिलता ? आपका गौरव कैसे बढ़ता ? मेरे मनोरथ कैसे सिद्ध होते ?" इसके बाद शूरपाल राजाने सब मन्त्रियों और सामन्तोंसे कहा,-"ये मेरे पिता और ये मेरे भाई P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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