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________________ षष्ठ प्रस्ताव। अपने आधे आसनपर बैठाया। उस समय मन्त्री और सामन्त आदिने उसे प्रणाम किया। ___उस दिन शीलमतीके साथ-साथ छांछ लेनेको शान्तिमती भी राजाके घर आयी हुई थी। जव राजाने क्रोधमें आकर शीलमतीको कैदखानेमें बन्द कर देनेकी आज्ञा दी, तब वह भागकर अपनी जगहपर. चली आयी और अपने घरके लोगोंसे कहने लगी,-"शीलमतीने राजा की हुई अँगिया नहीं ली, इसीलिये राजाने क्रोधके मारे उसे कैदख़ान डाल दिया है / " यह सुनते ही सबने कहा,–“जो हुआ, सो ठीक ही हुआ। बहुत कहने पर भी उसने अपनी हठ नहीं छोड़ी, इसलिही ऐसी सज़ा मिलनी ही चाहिये थी / " यह कह, सब लोग अ पने काममें लग गये। के बाद एक दिन राजाने महीपालको कुटुम्ब सहित निमंत्रित भि / तदनुसार वह अपने परिवारके साथ ठीक समय पर भोजन क नेके लिये राजाके घर आया। राजाने उन सब लोगोंको स्नान करा, अच्छे-अच्छे वस्त्र पहना, योग्यतानुसार श्रेष्ठ आभूषणोंसे उन्हें अलंकृत कर दिया। यह देख, महीपालने सोचा,-"इस राजाने जो बन्धुकी तरह हमारी इतनी ख़ातिरदारी की, उसका क्या कारण है ? अथवा जिससे जो कुछ लेना होता है, वह निर्गुण मनुष्य भी लेही सुरता है।” महीपाल यही सोच रहा था, कि राजा उन सब लोगोंको मोहर आसनों पर बैठा, उनके सामने बड़े-बड़े थाल रखवाकर आप उनके साथ ही उचित आसनपर बैठ गये। इसके बाद राजाके . हुमसे श्रेष्ठ वस्त्र धारण किये हुई सती शीलमती स्वयं ही उन्हें नाना प्रकारके श्रेष्ठ भोजन परोसने लगी / तब राजाने उससे कहा,-"प्रिये ! बहुत दिनोंसे मनमें रखा हुआ अपना मनोरथ आज सफल कर लो।" इसके बाद सब लोग भोजन करके उठे। राजाने अपने पिताको उत्तम सिंहासन पर तथा भाइयोंको भी उचित आसनों पर बैठा कर, माता और भाभियोंको भी अच्छे-अच्छे आसन दिलवाये। इसके NA Jun Gun Aaradhak Trust. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. 4
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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