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________________ . षष्ठ प्रस्ताव। है और जितना करनेको बाक़ी है, उसके अनुसार विचार करनेसे तो अभी दिन होना असम्भव मालम होता है। इसलिये यह अवश्य ही किसी देवकी माया मालूम होती है / " यही सोच कर वह चुप होरहा / इसके बाद उस देवने उसके मित्रका रूप धारण कर, सुगन्धित विलेपन और पुष्प लाकर उसके पास रख दिये ; पर उसने उसके हाथ भी नहीं लगाया। उससे बोला तक नहीं। जब इस तरह करनेसे भी वह नहीं डिगा, तब उस देवने अपनी मायासे एक पुरुष बनाया और उस पुरुषको उसकी भार्याके साथ विडम्बना करते हुए दिखलाया। तो भी उस श्रेष्ठ श्रावकको कोप या क्षोभ नहीं हुआ / इस प्रकार अनुकूल उपसर्गमें उसे निश्चल जान कर उस देवने सिंह और पिशाच आदिके प्रतिकूल उपसर्ग दिखलाने शुरू किये। तो भी उसे क्षोभ नहीं हुआ। तब उस देवने अपना रूप प्रकट कर, इन्द्रकी की हुई प्रशंसाका हाल सुनाते हु उससे कहा,- "हे श्रावक ! मैं तुम्हारा कौनसा प्रिय कार्य करूं ?" या सुन, उसने निस्पृहताके कारण कुछ भी नहीं मांगा। तब फिर उस वने कहा, "हे श्राद्ध ! देवका दर्शन कभी निष्फल नहीं होता- इस लिये कुछ भी तो मॉगो।" तब जिनचन्द्रने कहा,- "हे देव ! लोकमें जिनधर्मकी प्रभावना हो, ऐसा काम करो।" यह सुन, उस देवने अपने परिवार सहित जिनचैत्यमें जा, अष्टाह्निका महोत्सव किया और सुग: मान पुष्षोंसे श्रीजिनेश्वर की पूजा की। इसके बाद वह जिनेश्वरके ने बाहुदण्डको ऊँचाकर नृत्य करने लगा। यह देख, सब लोगोंने के साथ पूछा,-"अहा ! श्रीजिनधर्मका माहात्म्य . कैसा है ?" कहा,-"इस जिनधर्मका प्रभाव कल्पवृक्ष और चिन्तामणिसे भी है। इसके प्रभावसे प्राणियोंको स्वर्ग और मोक्षका सुख प्राप्त Sto "मैन / इसलिये सुखार्थियोंको चाहिये, कि श्रीजिनशासनके विषय में किया गप्नामें सर्वथा यत्न करते रहे।" देवका यह वचन सुन, लोग पर हो गये। इस प्रकार जिनधर्म की प्रभावना कर, जोगी आज्ञा लेकर सौधर्म-लोकमें चला गया। गरका रुधिरसे पोत T Jun Gun Aaradhak Trust पास आय
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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