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________________ . श्रीशान्तिनाथ चरित्र / ... maaaaaaaaaaaaa wwwwwwwwwwwwwwww www.xniwwamanaramwwmain भेद केवल मैथुनसे परहेज़ रखना और हस्त-स्पर्शादिके विषयमें स्वतन्त्रता रखना है। चौथा अव्यापार नामका पौषध है / यह भी दो तरह का होता है। इनमें सर्व सावद्य-व्यापारका त्याग करना पहला और सिर्फ किसी.. किसी व्यापारका त्याग करना दूसरा भेद जानना चाहिये। (पौषध करते हैं उसमें आहार-पौषध देशसे और सर्वसे होता है। बाक़ीके तीनों प्रकारके पौषध सर्वसे ही होते हैं ) इस व्रतके ऊपर जिनचन्द्रका दृष्टान्त प्रसिद्ध है।" यह सुन, चक्रायुध राजाने वह कथा सुनानेकी प्रार्थना की / तब प्रभुने जो कथा कही वह इस तरह है, जिनचन्द्रकी कथा उन्हा इसी भरतक्षेत्रमें सुप्रतिष्ठित नामका नगर है। उसमें अनन्त र्य मामके राजा राज्य करते थे। उसी नगरमें जैनधर्ममें अति निश्चल जिचन्द्र नामका एक श्रावक रहता था। उसके मनोहर रूपवाली सुन्दरी नामकी पत्नी थी ! एक दिन जिनचन्द्र श्रावक किसी पर्व दिवसके उप लक्ष्यमें शुभ-वासनासे पौषध ग्रहण कर पौषधकालामें पड़ा हुआ था। उस समय शक्रेन्द्रने अवधिज्ञान द्वारा उसकी निश्चल होकर पौंषधवा ग्रहण किये हुए जानकर देवताओंकी सभामें उसकी इस प्रकार प्रा की,-"अहा ! जिनचन्द्र नामक श्रावक पौषधव्रतमें ऐसा निवः / हो रहा है, कि उसे देवता भी नहीं डिगा सकते / " यह उसकी प्रशंसासे जल-भुनकर एक देव, इन्द्रकी आज्ञा ले, उसकी पर करनेके लिये आया। उस समय उस देवने मायासे प्रात:काल बिना ही सूर्योदय उपस्थित कर दिया और उसकी बहनका रू किये उसके पास आकर कहा, "भाई ! तुम्हारे लिये र आयी हूँ। सूर्योदय हो गया है, इसलिये पौषध पूर्ण कामहले बहनकी यह बात सुन, उसने सोचा, "मैंने-कों तथा साधुओंको P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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