SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - षष्ठ प्रस्ताव। सुन, उसने राजासे अपनी तलवारको भूलसे उठाकर नहीं रखनेका हाल कह सुनाया। तो भी राजाने उसके अपराधके लिये उसे दण्ड देकर छोड़ दिया। - २–एक दिन राजाका एक शत्रु उसके पास विष लेने आया। उसकी प्रकृति जाने बिना ही उसने उसके हाथ विष बेच दिया। उस शत्रुने राजा और प्रजाका नाश करनेकी इच्छासे वह ज़हर ले जाकर गांवके तालाबमें डाल दिया। उस ज़हरीले पानीको पीकर बहुतेरे मनुष्य मर गये। जब राजाने यह बात सुनी, तब इस मामलेकी जड़का पता लगाते-लगाते उन्हें मालूम हुआ, कि समृद्धिदत्तने ही उनके शत्रुके हाथ विष बेंचा था और उसने उसके यहाँसे ज़हर लाकर प्रजाका नाश करनेके इरादेसे उसे सरोवरके जलमें डाल दिया था। यह बात मालूम होनेपर राजाने उसे बुलवाकर उसपर जुर्म कायम किया और उसे सज़ा दी। ३-एक दिन वह गाँवकी सभामें बैठा. हुआ था। इसी समय क किसान दो बछड़े लिये हुए उधरसे आ निकला। यह देख, समृ-. दिदत्तने उससे पूछा,-"ये बैल सधे हुए हैं या नहीं ?" उसने कहा,नहीं। तब उसने फिर कहा,-"इन्हें बड़ी बेरहमीके साथ डंडे मारपूरकर अच्छी तरह साध लेना चाहिये।" उसका यह कठोर वचन र वे दोनों बछड़े उसपर बड़े क्रोधित हो उठे। प्रायः प्राणीमात्रको प्रति कटुवचन कहनेवाला अप्रिय मालूम होता है। इसके बाद यलोंके स्वामीने उन्हें ज़बरदस्ती गाड़ीमें जोत दिया। उनके शरीर ल होनेके कारण, उनकी आँतें निकल पड़ी और वे दोनों हीं, अकाम द्वारा अपने अशुभ कर्मों का क्षय कर, मरणको प्राप्त हो, व्यन्तर SHREE मैंन तब समृद्धिदत्तको अपना शत्रु समझकर उन्होंने उसके शरीरकिया की व्याधियाँ उत्पन्न कर दी और कहा,-"अरे पापी! तूने के बारेमें बेमतलब ही पापोपदेश दिया था, उसका न " यह कह, वे उसपर अपना व्यन्तरपना रको धिरसे पति का Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy