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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। . किसान भी रहता था। वह एक दिन आधी रातको उठकर मन-हीमन विचार करने लगा,–“यदि मुझे लक्ष्मी प्राप्त हो जाथे, तो मैंही राजा हो जाऊँ और भरतक्षेत्रके छहों खण्डोंको पैरोंतले ले आऊँ। इसके बाद वैताढ्य-पर्वतपर रहनेवाले विद्याधर मुझे आकाशगामिनी विद्या बतला देंगे। उस विद्याके प्रभावसे मैं आलमानमें उड़ता फिरूँगा / " ऐसा सोचते-सोचते समृद्धदत्तने शय्यापरसे ही आसमानकी ओर . छलांगें मारी और नीचे गिर पड़ा। उसके शरीरको बड़ी चोट पहुँची। उसकी चीख सुनकर घरके आदमी इकट्ठे हो आये और उन्होंने उसे फिर पलँगपर सुला दिया। कितने दिन बाद बड़ीबड़ी मुश्किलोंसे उसकी पीड़ा दूर हुई और वह स्वस्थ शरीरवाला हो गया। : . .... ....१-एक दिन उसने सब लोगोंके सामने ही बहुतसा धन देकर एक अच्छीसी तलवार ख़रीदी। एक दिन वह तलवार भूलसे घरके आँगनमें ही पड़ी रह गयी और वह अन्दर जाकर सो रहा। जब दो पहर रात बीत चुकी, तब उसे उस तलवारकी याद आयी; परन्तु उसने प्रमादवश तलवारको घरमें लाकर नहीं रखा और “मेरी तलवार भला कौन छुएगा ?" यही सोचकर सो रहा। रातके चौथे पहर उस घरमें चोर पैठे और वही तलवार लिये हुए अपने घर चले गये। एक दिन उन चोरोंने उसी खड़के प्रतापसे किसी तरह नगर सेठके पुत्रको हक कर कैद कर लिया। इसी समय राजपुरुषोंने उन चोरोंको मार चोरोंने भी सेठके लड़केकी जान ले ली। राजकर्मचारियोंने चोरों घरसे बरामद की हुई वह तलवार ले जाकर राजाको दे दी। यह दे क्रोधित होकर राजाने उसे बुलाकर कहा, “रे दुष्ट ! क्या तूने ही/ पाप किया है ?" उसने कहा,-"नहीं, स्वामी! मैंने हरगिनी किया। राजाने पूछा,---"यह तलवार तुम्हारी है या नहीं तुम्हारी तलवार लेकर किसी दूसरेनेही यह पकी मम हो, तो भी तुम्ही इस पापके करनेघाले स है . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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