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________________ 354 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / पत्र, पुष्प और फल तथा पल्लव और पाँच प्रकारके शाक / इसके सिवा जलचर, थलचर और नभचरका ( अर्थात् खेचर-तिर्य चोंका) मांस--इन सबको षडरस-युक्त जलके साथ तैयार करना-येही अठारह प्रकार भोजनके हैं।" इसके बाद नटके नाटकका दृष्टान्त मन-ही-मन याद करते हुए राजा. ने पहले जघन्य आहार किया। इसके बाद मध्यम और उत्तम आहार भी इस तरह गलेतक लूंस-ठूस कर खाया, कि उनके पेटमैं हवाकी भी गुंजाइश न रही। इससे राजाको हैज़ा हो गया। उसी बीमारीसे मरकर वे व्यन्तर हुए। सुबुद्धि मंत्रीने अपने शरीरकी हालत देख, सोच-समझकर भोजन किया, इसीलिये वह दुखी नहीं हुआ। इस प्रकार मैंने तुम्हें भोगमें लुब्ध होनेका बुरा नतीज़ा कथाके द्वारा बतलाया। अब उपभोगकी निवृत्ति नहीं होनेसे जो दोष होता है, उसे भी बतलाये देता हूँ। 9nommo*LAnoonoe . नित्यमण्डिता ब्राह्मणीकी कथा। Gerr70er7 #er7erut __ इसी भरतक्षेत्रमें वर्धन नामका एक गाँव है / उसमें वेदोंके अभ्यास... में तत्पर अग्निदेव नामका एक ब्राह्मण रहता था। उसकी भार्याका का सुनन्दा था। गाँवके लोग उस ब्राह्मणको बहुत मानते थे, इसीसे वि। लोगोंसे धन मिल जाया करता था। इसी प्राप्तिकी बदौलत वह का धनवान हो गया। एक समयकी बात है, कि उस ब्राह्मणने असर स्त्रीके लिये सारी देहके अच्छे-अच्छे गहने बनवाये। उस दिन बराबर उन सभी अलङ्कारोंको पहने हुई रहने लगी-वह कानी : नहीं उतारती थी। यह देख, उसके स्वामीने कहा,-"प्या ङ्कारोंको कभी-कभी तीज-त्यौहारके दिन पहन लिया की म त रणतः इन्हें छिपाकर रख दिया करो ; क्योंकि हर कर, वर बनज.. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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