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________________ an.ra....na.sa.m...morror 352 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। जाकर छोड़ दिया / वहाँ उले मुरदा समझकर उसपर बहुतले पक्षी आकर बैठने लगे और चोंचकी ठोकरसे उसे पीड़ा पहुँचाने लगे। यह. देख, भील-बालकोंने बाण मारकर गिद्ध आदि पक्षियोंको मार गिराया। इस प्रकार सन्ध्यापर्यन्त उसकी फ़ज़ीहत कर, वे उसे घर ले आये। और उसे बन्धनसे मुक्तकर, खिला-पिलाकर बड़े यत्नसे उसे घरमें छिपा रखा / दूसरे दिन फिर उन सबने उसकी वैसी ही विडम्यना की। इस प्रकार उसने बहुत दिन तक दुःख भोगा। एक दिन भीलोंके लड़कोंने उसकी वैसी ही दुर्गतिकर, उसे जंगलमें छोड़ दिया। इतनेमें वहाँ एक बाघिन आयी। उसके डरके मारे भोलके वे लड़के भाग गये और वह बाघिन स्वयंभूदेवको उठाकर अपने बच्चोंके भोजनके लिये जङ्गलमें ले गयो / वहाँ अपनी डाढोंसे उसके हाथ-पैरोंके बन्धन काटकर, उसे वहीं छोड़, वह बाघिन अपने बच्चों को बुलाने चली गयी। इसी समय स्वयंभूदेव वहाँसे भागा और नदोमें अपना शरीर धो, एक काफ़िलेके सङ्ग हो लिया। उन्हीं लोगोंके लाथ चलकर वह कुछ दिनों बाद, अपने घर पहुंचा। वहाँ पहुंचकर उसने सोचा,-"रे जीव ! तु अधिक लोभके कारण चिरकाल तक दुनियाँ भरकी खाक छानता फिरा, पर तूभरपेट भोजन भी न पा सका तू जीता घर लौट आया, इसीको बड़ा भारी लाभ समझ ले।” इस प्रकारका विचार मनमें आनेसे उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने एक मुनिसे चरित्र ग्रहण कर लिया तथा उसकी अतिचार सहित पालनकर, आयुष्य पूर्ण होने पर, मरकर स्वर्गचला गया . स्वयंभूदेव-कथा समाप्त / ... यह कथा सुनाकर भगवान्ने कहा, "भोगोपभोगका प्रमाण कर ले दूसरा गुणवत कहलाता है / यह व्रत भोजन और कर्मके भेदसे दो रका है / इनमें भोजनका व्रत यह है, कि विवेकी मनुष्य अनत आदि अभक्ष्योंका भक्षण न करें और समस्त खर-कर्म ( का त्याग करना, कर्मका व्रत कहलाता है। इनमें भी भोजनकी मदा इन पांच अतिचारोंका त्याग करना चाहियेर कर, वह ह-बनज P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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