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________________ aaaaaaaaaan..raarunawwamromanravinamaaaaaa. श्रीशान्तिनाथ चरित्र / कर्मोंका क्षय हुआ है या नहीं ? यदि क्षय हो गया हो, तो मैं दीक्षा ले लग देवने कहा,-"भाई ! तुमने पूर्व जन्ममें कुछ देवद्रव्य नष्ट कर दिया इस समय उसी कर्मका उदय हुआ है ; पर अब वह प्रायः क्षीण हो चला है-हाँ, समस्त क्षय नहीं हुआ है। इसलिये तुम अभी दीक्षाके योग्य नहीं हो।" यह कह, उस देवने उसे प्रसन्नता-पूर्वक बहुमूल्यवान् सुवर्ण समूह तथा उत्तम वस्त्र आदि बहुतसी चीजें दी / इसके बाद सुलसने कहा,- “हे देव ! तुम मुझे इस धनके साथ मेरे घर पहुँचा दो, जिससे मेरी प्रसिद्धि हो / " यह सुन, देवने वैसा ही किया और उसे पहुंचा कर अपने घर चला गया। . राजाने सुलसके आगमनका हाल सुनकर बड़ी धूम-धामके साथ उसका नगरमें प्रवेश कराया। सुलसने भी राजाको नज़राने देकर उनकी पूरी भक्ति की / इसके बाद सुलसकी कुलवती पत्नीने पतिके आगमनके उपलक्षमें बड़ी धूम-धामकी बधाइयाँ बैठायीं और हर्षके साथ पतिका सत्कार किया। कामपताका नामकी वह वेश्या, सुलसके जाने बाद उसी नगरमें रहती हुई बालोंकी वेणी बाँध, श्वेत वस्त्र पहने अन्य पुरुषोंका त्याग कर, शुद्ध शीलका पालन करनेमें तत्पर और सुलसके ही ध्यानमें मग्न रहती थी। वह प्रेममयी भी सुलसकी दूसरी स्त्री बन गयी। सुलस दोनों स्त्रियोंके साथ भोग-विलास करने लगा। - 'एक दिन सुलसने अपने मनमें सोचा,-"रे जीव! लोभमें पड़फर, लम्पटताके कारण परिग्रहका प्रमाण किये बिना तुम्हें कौन-कौनसा दु:ख नहीं उठाना पड़ा ? अब भी तो तुम परिप्रहका परिमाण करो।" ऐसः विचार कर, उसने अपने ही मनसे परिग्रहका परिमाण किया और सा धन जिनचैत्य आदि सात धर्मक्षेत्रोंमें लगाया। वे क्षेत्र इस हैं, जिनभवन, जिनप्रतिमा, आगम-ग्रन्थ और 'चार प्रकारके : ये सात क्षेत्र है / इसके उपरान्त जीर्णोद्धार, पौषधशाला र.. भी उसने बहुतसा धन लगाया। तदनन्तर बहमद्धतीत होने पर कर्मके दोषसे उसका धन प्रीष्मकालके सरोवरकी तरह . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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