________________ . श्रीशान्तिनाथ चरित्र / देखा। बस, वह आलस्य छोड़, आश्चर्य सहित उस शाखापर * गया। वहां उसने एक पक्षीके घोंसलेमें एक उत्तम मणि और सांपकी ठठरी देखी। यह देख, उसने सोचा,-"अवश्य ही यह विष उतारनेवाली सर्प-मणि है। इसीका यह प्रकाश है।" ऐसा विचार कर, उस रत्नको हाथमें लिये हुए सुलस उस वृक्षसे नीचे उतरा। उस मणिका प्रकाश देख, बाघ और सिंह भी भाग गये। क्रमशः सवेरा हो गया। इसके बाद उस मणिको वस्त्रके छोरमें बाँधे हुए वह सात दिन बाद उस जङ्गलके पार हुआ। वहाँ एक पर्वतपर आगका उजेला देखकर सुलस उसीकी सीधपर चलकर वहाँ पहुँचा और कितने ही आदमियोंको धातुवाद करते देखा। द्रव्यकी इच्छासे वह कितने ही दिन तक उनके पास रहा और उनकी सेवा करने लगा। वह उन्हीं लोगोंके साथ खाता-पीता भी था। सुवर्ण सिद्धिके लिये उसने बहुत दिनोंतक धातुवाद किया; परन्तु जब कुछ.भी अर्थसिद्धि नहीं हुई, तब उसने अपने मनमें सोचा,_ 'धातु धमेविण जा धण आसा, सिर मुंडेविण जा रूवासा / वेस धरेविण जा घर पासा, तिन्निवी आसा हुइ निरासा // 1 // ' अर्थात्--"धातु फूंके बिना धनकी श्राशा, सिर मुंडाये बिना रूपकी आशा, और वेश बनाये बिना घरकी प्राशा, ये तीनों आशायें / मुझे तो निराशा रूपमें हुई हैं।" __ ऐसा विचार कर, वह एक दिन धातुके विषयमें भग्नचित्त और.. निरुत्साह होकर रातको सोया हुआ था, कि इसी समय उन धातुः / वादी पुरुषोंने उसे नींदमें बेहोश देख, उसके वस्त्रके छोरसे वह मणि निकाल ली और उसके स्थानमें एक पत्थरका टुकड़ा बांध दिया / इसके बाद प्रात:काल उठकर सुलस वहाँले चल पड़ा और अटवी शीर्षक नामक नगरमें आ पहुँचा। वहीं उस भाल लिये उसने अपनी गांठ खोली, तो रत्नकी जगह पर पाम इदंह सोचने लगा,--"ओह ! उन धातुवादियोंने जो मुझे लूट लिया। अब P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust