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________________ प्रथम प्रस्ताव / 23 अतएव हे राजकुमारी ! तुम दोनों एक तुच्छ स्त्रीके लिये अपने परम उपकारी माता-पिताकी मृत्युके कारण बने, इसलिये तुम्हें बार-बार धिक्कार है / " .. मुनिकी यह बात सुन, उन दोनोंकी आँखें खुली और उन्होंने युद्धसे हाथ खींच, बड़े आनन्दसे उस श्रेष्ठ मुनिकी प्रशंसा करनी प्रारम्भ की / "तुम्ही हमारे गुरु, पिता और बन्धु हो-तुमने हमको बड़ी भारी दुर्गतिसे बचाया" यह कहते हुए उन्होंने उस चारण-मुनिको प्रणाम किया और उस राजकन्याको छोड़कर दोनों अपने घर चले आये। यहाँ आकर उन्होंने अपने माता-पिताके मरण-कार्य सम्पन्न किये। इसके बाद अपने किसी सम्बन्धीको राजका भार सोप, वे दोनों ही धर्मरुचि नामक गुरुके पास चले आये और अन्य चार हज़ार मनुष्योंके साथ प्रव्रज्या अंगीकार कर ली। तदनन्तर बहुत दिनों तक दीक्षाका पालन कर, विविध प्रकारसे तपस्या करते हुए अपने कर्मोका क्षय कर, केवलज्ञान प्राप्त कर, वे मोक्षको प्राप्त हुए। - इधर उत्तर-कुरुक्षेत्रके श्रीषेण आदि चारों जुडैले तीन पल्योपम आयुष्यको ... पूर्ण कर, सौधर्म नामक देवलोकमें जा, तीन पल्योपम आयुष्यवाले देवता हुए। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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