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________________ 320 श्रोशान्तिनाथ चरित्र। तुम्हें मालूम नहीं है ? मैं तो इस लड़कीके मुख-मण्डन करनेकी चतुराई देखकर, राग-रहित भावसे तुमसे इसके बारेमें वैसा सवाल किया था; नहीं तो इस जिनालयमें स्त्री-जातिका नाम भी नहीं लेना चाहिये। क्योंकि सिद्धान्त-ग्रन्थोंमें लिखा हुआ है, कि जिनेश्वरके मन्दिरमें 1 ताम्बूल, 2 जलपान, 3 भोजन, 4 वाहन, 5 स्त्रीभोग, 6 शयन, 7 थूकना, 8 मूतना, 6 उच्चार और 10 जुआ आदिका सेवन नहीं करना चाहिये। (ये दसों बड़ी आशातनाएँ हैं) इसलिये नारीकी बात चलानी भी उचित नहीं है। जिनदत्त ऐसा कह ही रहा था, कि जिनमतीने उसकी ओर देखा। उसका सुन्दर चेहरा-मोहरा और रूप लावण्यादि देखकर उस कन्याके चित्तमें अनुराग उत्पन्न हो आया,उसके मनकी यह हालत उसकी सखियाँ जान गयीं। घर जाकर उन सबने उसके माता-पितासे उसका यह अभिप्राय कह सुनाया। जिनदत्त भी अपने घर आ, भोजनकर, दूकान पर पहुंचा और द्रव्य उपार्जन करनेके लिये व्यापार करने लगा। . इसी समय जिनमतीका पिता जिनदास सेठके पास आया और . अपनी पुत्री उसके पुत्रको देनी चाही। सेठने भी बड़े उल्लास और हर्षके साथ यह सम्बन्ध स्वीकार किया। उसने सोचा,-"जिसके पास अपने समान वित्त हो और जिसका कुल अपने समान हो, उसी के साथ मित्रता और विवाहका सम्बन्ध करना चाहिये ; परन्तु यदि एक ऊँचे और दूसरा नीच कुलका हो, तो ऐसी असमानतामें सम्बन्ध करना उचित नहीं है।".. उसने फिर सोचा,-"आती हुई लक्ष्मीका निषेध करना ठीक नहीं है।" इसी प्रकार इन लोकोक्तियोंका मन-हीमन विचार करते हुए उसने यह सम्बन्ध स्वीकार कर लिया और अपने प्रिय मित्र श्रेष्ठीको आदरके साथ बिदा किया। इसके बाद जब जिनदत्त घर आया, तब उसके पिताने उससे विवाहकी बात कही / यह सुनकर उसने कहा, "मैं तो विवाह करनेकाही नहीं हूँ। मैं दीक्षा लेनेवाला हू।" यह सुन, उसके पिताने उससे P.P.AC. Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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