SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ प्रस्ताव। EADOHOROGEOGODOGooजवन जिनदत्तकी-कथा HEROopODES छ50RaooH0RssoooGOES " : वसन्तपुरमें जितशत्रु नामके राजा रहते थे। उसी नगरमें सेठ जिनदासका पुत्र जिनदत्त भी रहता था, जो जीवा जीवादितत्त्वोंका जाननेवाला उत्तम श्रावक था। वह युवावस्थाको प्राप्त होनेपर भी वैराग्य प्रवृत्तिके कारण चारित्र ग्रहण करना चाहता था और विवाहादि झंझटोंसे भागा फिरता था। एक दिन वह अपने मित्रोंके साथ नगरके बाहर उद्यानमें गया हुआ था। वहाँ उसने एक ऊँचे शिखरवाला बड़ा भारी जिनमन्दिर देखा। उसे देखते ही उसका चित्त हर्षसे खिल उठा। इसके बाद विधिपूर्वक जिन मन्दिर में प्रवेश कर, पुष्पादिसे जिनेश्वरकी पूजा कर, वह चैत्य वंदन करने लगा। इसी समय उसी नगरीकी रहनेवाली एक कन्या वहाँ आयी। वह उत्तरीय वस्त्रसे मुख-कोश बाँध, मनोहर सुगन्धित द्रव्योंसे जिन प्रतिमाका मुख शोभित करनेके लिये उसके दोनों गालों पर बेल काढ़ने लगी। इस . प्रकार उस लड़कीको जिनेश्वरकी भक्तिमें लीन देख कर मन-ही-मन आश्चर्यमें पड़े हुए जिनदत्तने अपने मित्रोंसे पूछा,-"मित्रो! यह * किसकी लड़की है ?" उन लोगोंने कहा,-"ऐं! क्या तुम इसे नहीं जानते ? यह प्रियमित्र नामक सौदागरकी पुत्री, जिनमती. है, जो सब स्त्रियोंमें शिरोमणि है। इधर तुम भी रूप-लावण्य आदि गुणोंसे पुरुषों में शिरोमणि हो रहे हो। इसलिये यदि कदाचित् विधाता तुम दोनोंकी जोड़ी मिला दे,तो उस सिरजनहारकी सारी मिहनत सफल हो जाये। उसकी सृष्टि-रचनाका प्रयास सार्थक हो जाये।" ... ". जब मित्रोंने इस प्रकार हँस कर कहा, तो जिनदत्तने कहा,"हे मित्रो! तुम लोग इस जिनमन्दिर में मेरे साथ दिल्लगी कर रहे हो, यह अच्छा नहीं है। मित्रो! मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ, यह क्या P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy