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________________ 310 श्रीशान्तिनाथं चरित्र / जिला दो। तब उसने कहा,--"यदि यह जीवन भर दुष्कर क्रिया . करे, तो यह जी जायेगा। मुझे भी पहले इन सांपोंने डंसा था। मने . इनका विष दूर करनेके लिये निरन्तर जैसी क्रियाएँ की हैं, वह सुनोमैं सदा सिर और दाढ़ी-मूंछके बाल नोंच देता हूँ, प्रमाणयुक्त श्वेत वस्त्र पहनता हूँ, उपवासादिक विविध प्रकारकी तपस्याएँ करता हूँ, इन तपस्याओंके पारणाके समय भी रूखा-सूखा भोजन करता हूँ, कभी कण्ठ पर्यन्त भोजन नहीं करता और उबाला हुआ पानी पीता हूँ। भाइयो ! यदि मैं ऐसा न करूं, तो इनका विष फिर मेरी देहमें व्याप जाये। साथही मैं कभी वनमें रहता हूँ, कभी पर्वत पर रहता हूँ और कभी सूने घर या स्मशानमें ही रहता हूँ। इसी तरह राग-द्वेष रहित सम्यक् प्रकारसे अनेक परिषहोंका सहन करता हूँ। ऐसा ही करने.. से मेरे विष नहीं चढ़ने पाता। और जो कोई अल्प आहार करता है, अल्प निद्रा लेता है और अल्प वचन बोलता है, उसके वशमें ही ये सर्प हो जाते हैं। यही नहीं, देवता भी उसके अधीन हो रहते हैं। इसलिये भाइयो! अधिक कहनेसे क्या लाभ / यदि यह मेरे कहे मुताबिक रहे, तो जियेगा, नहीं तो अवश्य ही मर जायेगा।" यह सुन सब मनुष्योंने कहा, "हे गारुड़िक ! यह भी ऐसा ही करेगा। तुम 'कुछ ऐसा उपाय कर दो, जिससे विश्वास उत्पन्न हो / " उनकी ऐसी बात सुन, उस गारुड़िकने एक बड़ा भारी मण्डल खींचा और सब सिद्धोंको प्रणाम कर, सारी महाविद्याओंको नमस्कार कर, इस प्रकार की पवित्र विद्याका उच्चारण किया,--'सर्व प्राणातिपात, सर्व मृषावाद, सर्व अदत्तादान, सर्व मैथुन और सर्व परिप्रहको तुम जीते जी सर्वथा त्याग करो।" इसी दण्डकको तीन बार कहनेके बाद उसने अन्तमें 'स्वाहा' शब्दका उच्चारण किया, इससे वह श्रेष्ठीपुत्र तुरत होशमें आकर उठ बैठा। उसकी विद्याके प्रभावसे जब वह नींदसे जगे हुएकी तरह उठकर खड़ा हुआ, तब उसके स्वजनोंने गारुड़िककी कही हुई सब बातें बतला दी। पर नागदत्तने उस तरहकी क्रियाए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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