SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ प्रस्ताव / 306. xmmmmmmmmmcorecaonmanner 'आरक्तनयनः क्रूरो, द्विजिह्वो विपपूरितः / क्रोधाभिधानः पूर्वस्या-मादिमोऽयं सरीसृपः // 2 // अयमष्टफणाटोप-भीषणः स्तब्धवर्मकः / याम्यायां यमसकाशो, मानो नाम महोरगः // 2 // वञ्चनाकुशला वक्र ामना पश्चिमश्रिता। इयं मायाह्वया नागी, धतु केनेह शक्यते // 3 // अयं हि दिशि कौर्या, लोभो नाम भुजंगमः / समुद्र इव दुष्पूरो, दष्टो येन भवेन्नरः // 4 / / ' ____अर्थात्-"पूर्व दिशा में रहनेवाला यह पहला सर्प क्रोध नामका है। इसकी आँखें लाल रंगकी है और स्वभावका बड़ाही क्रूर है / इसके दो जिहवाएँ हैं और विषसे भरा हुआ है / दक्षिण दिशामें रहनेवाला यह मान नाम का दूसरा सर्प, अपने आठ फनोंके आटोपसे बड़ा भयकर दिखता है, इसका शरीर स्तब्ध है और यमराजकी तरह महा भयानक है / पश्चिम दिशामें रहनेवाली यह माया नामकी नागिन है, जो छल करने में चतुर और टेढ़ी चाल चलनेवाली है / इसे भला कौन पकड़ सकता है ? और यह उत्तर दिशावाला साँप लोभ नामका है जिस मनुष्य को यह डॅस देता है, वह समुद्रकी तरह दुष्पुर हो जाता है / . ... जो प्राणी इन चार सोसे डंसा जायेगा, वह अवश्य ही नीचे गिर पड़ेगा-उसे कहीं कोई आलम्वन नहीं मिलेगा।" . ... यह सुन, गन्धर्व नागदत्तने कहा, -“हे गारुड़िक ! इतनी बातोंका बतङ्गाड़ किस लिये करते हो? तुम जल्दी ही उन सोको मेरी ओर छोड़ो।" यह सुनते ही उसने अपने साँप छोड़ दिये। उन चारोंने एकही साथ उस सौदागरके बेटेको काट खाया, जिससे वह उसी क्षण . गिरकर बेहोश हो गया। उस समय उसके मित्रोंने मणि और मन्त्र आदिके अनेक बार प्रयोग किये, पर उसे जरा भी होश नहीं हुआ। तब उसके मित्रोंने गारुडिकसे कहा, "हे भद्र ! इसे किसी तरह P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy