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________________ .266 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। - दूसरे दिन, रातका पहला पहर बीतने पर कुमार अदृश्य रूप (जो दूसरेको न दिखाई दे ) बनाये अपनी पत्नी कनकवतीके महलोंमें आये। उस समय कनकवती अपनी दो दासियोंके साथ बैठी बातें कर रही थी। बातों-ही-बातोंमें उसने दासियोंसे पूछा, - “हे सखियो! इस समय कितनी रात बीता होगी?" वे बोलीं,-"अभी दो पहर रात नहीं बीती है। स्वामिनी ! वहाँ जानेका समय हो चला है।" यह सुन, कनकवतीने स्नान कर, अंगोंपर विलेपन लगाया और दिव्य वस्त्र पहन, बात-की-बातमें देवगृहके समान एक सुन्दर विमान बना कर उसीपर दासियोंके साथ सवार हो गयी। इसके बाद जब वह जानेको तैयार हुई, तब उसका यह सब बनाव-सिंगार देख, आश्चर्यमें पड़कर गुणधर्मकुमारने सोचा,-"ऐ ! इस स्त्रीने विद्याधरियोंके समान विमान कैसे बना लिया ? और इस विमान पर चढ़ कर इतनी रात गये कहाँ चली जा रही है ? अथवा इस सोच-विचारसे मतलब क्या है ? मैं भी इसी तरह इसकी नज़रोंसे छिपा हुआ इसके साथ-साथ जाऊँ और चलकर देखू, कि यह कहाँ जाती है और क्या करती है ?" .यही सोचकर कुमार अदृश्य-रूपसे उसी विमानके एक कोने में चढ़ बैठे और साथ-साथ चल पड़े। वह विमान उत्तर दिशामें बड़ी दूर जाकर नीचे उतरा। वहाँ एक बड़े भारी सरोवरके पास एक अशोक-वन था, जिसमें एक विद्याधर रहता था। कुमारने उसको देख लिया / कुमारकी पत्नी कनकवती विमानसे नीचे उतर, उस विद्याधरको प्रणाम कर, उसके पास बैठ रही। इतनेमें और भी. तीन कन्याएँ विमानोंपर चढ़ी हुई वहाँ आयीं और उस विद्याधरको प्रणाम कर, उसके पास बैठ रहीं। इसके बाद और भी. कितने ही विद्याधर वहाँ आ पहुँचे। . . . . . . . . . . उस अशोक वनके ईशानकोणमें श्रीयुगादि जिनेश्वरका मनोहर और विशाल चैत्य था। उस मन्दिरकी सीढ़ियां रत्नों और सुवर्णकी, थीं, जिनसे वह मन्दिर देव-विमानकी तरह शोभित हो रहा था। थोड़ी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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